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जन्म से बंधी सामाजिक बेड़ियां : हर्ष मंदर

लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे आज भी उन अपमानजनक सामाजिक बेड़ियों में बंधे हुए हैं, जो उनके जन्म से ही उन पर लाद दी गई थीं। आधुनिकता की लहर के बावजूद आज भी भारत के दूरदराज के देहातों में जाति व्यवस्था जीवित है। यह वह व्यवस्था है, जो किसी व्यक्ति के जाति विशेष में जन्म लेने के आधार पर ही उसके कार्य की प्रकृति या उसके रोजगार का निर्धारण कर...

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मेहनतकश की मजदूरी का सवाल : हर्ष मंदर

‘खेतों और फैक्टरियों में काम करने वाले हर मजदूर और कामगार को कम से कम इतना अधिकार तो है ही कि वह इतनी मजदूरी पाए कि अपना जीवन सुख-सुविधा से बिता सके..।’ वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दे रहे जवाहरलाल नेहरू ने यह बात कही थी। इसके नौ दशक बाद स्वतंत्र भारत की केंद्र सरकार ने कहा कि लोककार्य के लिए कानून द्वारा स्थापित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान...

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वंशवाद से व्यक्तिवाद तक-रामचंद्र गुहा

दिसंबर 2008 में मैं आईआईटी मद्रास में भारतीय लोकतंत्र की अपूर्णताओं पर बोल रहा था। इन्हीं में से एक बिंदु था राजनीतिक वंशवाद। मेरे बाद कनिमोझी का व्याख्यान था। उन्होंने मेरे वक्तव्य के कुछ अंशों का खंडन करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि मैं युवा भारतीयों को अपनी पसंद का कॅरियर चुनने से रोक रहा हूं। यदि किसी क्रिकेटर का बेटा क्रिकेटर बन सकता है और किसी संगीतकार की...

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फेंके जूठन से आग बुझती पेट की

आसनसोल : विकासशील देशों के लिस्ट में लगातार आगे बढ़ रहे भारत में अब भी लाखों बच्चे ऐसे हैं जो हर दिन लोगों द्वारा फ़ेके हुए कचरे से अपना पेट भरते हैं. शनिवार को आसनसोल रेलवे स्टेशन के सात नंबर प्लेटफॉर्म पर कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला. चार गरीब बच्चे कचरे के पास पहुंचे और एक पॉलिथिन को उठा-उठा कर देखने और खोलने लगे. एक पॉलिथिन में कुछ बचा हुआ...

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मानवाधिकार संगठन की नई रिपोर्ट - किसान-आत्महत्या के कुछ अनदेखे पहलू

क्या सरकारी प्रयासों के बावजूद किसानों की आत्महत्या के ना थमने वाले सिलसिले का एक पहलू दलित और महिला अधिकारों की अनदेखी से भी जुड़ता है। सेंटर फॉर ह्यूमन राइटस् एंड ग्लोबल जस्टिस(सीएचआरजीजे) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट की मानें तो- हां। सीएचआरजीजे और द इंटरनेशनल ह्यूमन राइटस् क्लीनिक की तरफ से जारी इस रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि खेतिहर संकट से जूझ रहे भारत में किसानों की आत्महत्या की...

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