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दिल्ली की बेघर आबादी और हीटवेव का अनुभव

इंडियास्पेंड, 18 अप्रैल  दिल्ली के अधिकतर बेघर लोग शहर के बाहरी इलाकों और औद्योगिक क्षेत्रों में रहने की तुलना में शहर के बीच के इलाकों में रहते हैं, जहां की सतह का तापमान अपेक्षाकृत कम है। हालांकि गर्मियों के मौसम में उनका यहां पर रहना भी दूभर हो जाता है। देश एक बार फिर भीषण गर्मी का सामना करने जा रहा है और इस साल अधिक हीटवेव दिनों का पूर्वानुमान है। ये...

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वन संरक्षण में मदद करते हैं वन गुज्जर, लेकिन अधिकारों से वंचित हैं

द थर्ड पोल वन गुज्जर समुदाय के एक नेता मोहम्मद साफी कहते हैं, “वन गुज्जरों को जंगलों से हटाओ…और सभी जानवर प्यास से मर जाएंगे।” वन गुज्जर प्राकृतिक झरनों से सुट्टा (छोटा तालाब) बनाते हैं, जो उनके मवेशियों और जंगली जानवर, दोनों को जीवित रहने के लिए गर्मी के महीनों में बेहद जरूरी पानी उपलब्ध कराते हैं। 55 वर्षीय साफी इस पारंपरिक चरवाहा समुदाय की उस जमीन को आकार देने में...

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जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए स्थानीय पहल अधिक जरूरी क्‍यों?

इंडियास्पेंड, 04 जनवरी झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट पहाड़ियों में बसे गांव दादीचापर में बिरजिया जनजाति के लगभग 35 परिवार रहते हैं। बिरजिया समुदाय भारत के सबसे दुलर्भ चिन्हित 75 आदिवासी समूहों में से एक है। बादलों से ढकी घुमावदार पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र काफी मनोरम दिखता है। दादीचापर गांव, लातेहार शहर से 30 किलोमीटर दूर है और इस गांव तक एक पथरीली और घुमावदार सड़क...

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लोहरदगा के कुड़ू प्रखंड में मनरेगा के 18 हजार 88 जॉबकार्ड, एक साल में सिर्फ 202 लोगों को मिला 100 दिन का रोजगार

जनचौक ,9 मई  मनरेगा योजना पहले ही प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान स्थापित करती रही है, जिसके कारण मनरेगा मजदूर परेशान रहे हैं। अब केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के बजट में की गयी भारी कटौती और उसमें किये गए तकनीकी बदलाव के चलते योजना से मजदूरों का मोहभंग हो रहा है। दरअसल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली एनएमएमएस के द्वारा मज़दूरों की उपस्थिति दर्ज करने के साथ-साथ आधार आधारित भुगतान प्रणाली...

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जीरो-डोज बच्चों के मामले में पहले नंबर पर भारत, जीवन रक्षक टीकों से पूरी तरह वंचित हैं 27 लाख बच्चे

डाउन टू अर्थ, 20 अप्रैल  दुनिया में जीरो-डोज बच्चों के मामले में भारत पहले स्थान पर है। जहां 27 लाख बच्चों को जीवन रक्षक टीकों की एक भी खुराक नहीं मिली है। देखा जाए तो आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति दयनीय है, जोकि चिंता का विषय है। यदि महामारी से पहले के आंकड़ों को देखें तो जहां देश में शून्य-खुराक वाले बच्चों की संख्या 13...

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