माध्यम कोई भी हो, जब तक उसे विज्ञापन का साथ नहीं मिलता, तब तक उसका विस्तार संभव नहीं है। माध्यमों की प्रगति का यह सफर टीवी और अखबार से होते हुए अब इंटरनेट तक पहुंच गया है। अभी हम इंटरनेट विज्ञापनों के साथ जीना सीख ही रहे हैं, मगर बाजार इंटरनेट के माध्यम से कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा लेना चाहता है। असल में, कंटेंट...
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फिजूलखर्ची से ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था-- एस. श्रीनिवासन
मध्य वर्ग अपने राज्य के बजट को आमतौर पर नजरंदाज करता है। उसके लिए यह एक सालाना कवायद है, जो उसके रोजमर्रा के जीवन से बहुत ज्यादा वास्ता नहीं रखती। राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया भी इसे लेकर एक तरह से उदासीन रहते हैं। मगर राज्य के बजट महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये बताते हैं कि सियासी दलों ने चुनाव के दरम्यान जो वादा किया था, उसे वे पूरा कर रहे हैं...
More »निष्पक्ष चुनाव का भरोसा न हो खंडित--- एसवाई कुरैशी
ईवीएम विवाद एक बार फिर गरम हो उठा है। साल 1982 से जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, तब से इस पर विवादों की छींटे पड़ते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने बार-बार यह साफ किया है कि यह व्यवस्था सुरक्षित और चाक-चौबंद है। ईवीएम का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (परमाणु ऊर्जा विभाग का एक उद्यम) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (रक्षा विभाग के अधीन) करते हैं, और...
More »बीते 6 सालों से SC और ST में बेरोजगारी की बढ़त बहुत ज्यादा..!
चौंकिए कि सबका साथ, सबका विकास के गूंजते चुनावी नारों के बीच एक चौंकाने वाली खबर आई लेकिन मीडिया के एक बड़े हिस्से में रिपोर्ट होने से रह गई ! बीते पांच सालों में देश में बेरोजगारी बड़ी तेजी से बढ़ी है और समाज के वंचित तबकों में बेरोजगारी की बढ़त कहीं ज्यादा तेजी से हुई है. केंद्रीय नियोजन राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने संसद के बजट-सत्र में सदन को बताया कि...
More »युवा हरदम रहा है आजादखयाल - मृणाल पांडे
कहना कठिन है कि जेएनयू के कमउम्र छात्रों तथा परिसर की गोष्ठियों में कुछ प्रत्याशित सी बहसों तथा अचानक आए अनजान लोगों की उकसाऊ नारेबाजी से सरकार ने एकदम उखड़कर शिक्षकों सहित उस परिसर को लगभग अपना भीषण दुश्मन क्यों मान लिया होगा? इस बात के तूल पकड़ने पर बेवजह उसने देश भर के अकादमिक जगत तथा मीडिया के बडे हिस्से से बेवजह दुश्मनी साध ली, पर अब लगता है...
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