सरकार चाहती है कि देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर हो, लेकिन वह बैंकों की सेहत सुधारने की दिशा में ठोस पहल नहीं कर रही है। मजबूत अर्थव्यवस्था की रीढ़ बैंकिंग क्षेत्र को माना गया है। अर्थव्यवस्था को बैंकों की मदद से ही संतुलित रखा जा सकता है। बैंकों की सकारात्मक भूमिका के बिना वित्तमंत्री देश के विकास के सपने को साकार नहीं कर सकते हैं। संपत्ति शोध कंपनी ‘न्यू...
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एंथ्रोपोसीन मतलब मानव युग -- बिभाष
वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मत है कि आइस एज के बाद बारह हजार वर्षों का स्थिर जलवायु का दौर होलोसीन, जिसके दौरान मानव सभ्यताओं का विकास हुआ, अब समाप्त हो चुका है. इस दौर की समाप्ति का कारण है मानव जाति का धरती की जलवायु में जबरदस्त हस्तक्षेप. वैज्ञानिक नये दौर को एक नया नाम 'एंथ्रोपोसीन' देना चाहते हैं. द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने तो वर्ष 2011 में ही...
More »अंधविश्वास का इतना खौफ कि गांव के किसी घर में शौचालय नहीं
गुना। ध्रुव झा। जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां पक्का मकान तो दूर घरों में शौचालय तक नहीं हैं। यहां के कई जमीदार परिवार लखपति हैं। घरों में चार पहिया वाहन, एलईडी, फ्रिज, कूलर और बाइक हैं, लेकिन गांव के लोग संपन्न् होने के बाद भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। इसकी वजह भी बड़ी अजीबोगरीब है। दरअसल, यहां के लोग अंधविश्वास की वजह से घरों...
More »बुजुर्गों का गांव बना गुजरात का चांदणकी, यहां नहीं रहते नौजवान
अहमदाबाद। आजादी के इतने सालों बाद भी पलायन देश की एक बड़ी समस्या है। रोजगार की तलाश में करोड़ों युवा शहरों का रुख करते हैं। गुजरात के सुदूर इलाकों में ऐसे कई गांव हैं, जहां युवाओं की संख्या नगण्य है। आइए आपको गुजरात के ऐसे गांव के बारे में बताते है, जहां नौजवान ही नहीं रहते। गुजरात के मेहसाणा जिले की बेचराजी तहसील में स्थित चांदणकी गांव जहां अब केवल...
More »1000 करोड़ की फसल बर्बादी से धीमी होगी विकास की चाल-- प्रकाशकांत
पूरे देश की ही तरह मध्य प्रदेश के अर्थतंत्र की रीढ़ भी खेती है। इसी खेती ने 2008 की विश्व मंदी में भी देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया था। हालांकि, यही खेती खुद भी कभी सूखे तो कभी अतिवृष्टि की शिकार होती रही है। नईम की इन पंक्तियों की तर्ज पर कि 'सूखे का हुआ कभी/कभी हुआ बाढ़ का/पहला दिन मेरे आषाढ़ का"। इस बार आषाढ़ तो नहीं मगर...
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