संतोष की बात है कि आखिरकार दुनिया ने घरों में काम करने वाले कामगारों की फिक्र की है। यह भी प्रशंसनीय है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 100वें अधिवेशन में ऐसे कामगारों के हक में हुई संधि का समर्थन किया। अब यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि भारत सरकार जल्द इस संधि का अनुमोदन करे और इसे लागू करने के लिए जरूरी कानूनी प्रावधान करे। यह दुखद है कि संपन्न...
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सारण में घट रहा महिला लिंगानुपात
छपरा : सरकार आधी आबादी को समान अधिकार एवं उनकी सामाजिक पकड़ मजबूत बनाने के लिए तरह-तरह का प्रोत्साहन देने वाली योजनाएं चला रही है. बावजूद हमारे समाज में अभी भी कन्याओं के प्रति रवैया नकारात्मक है. इसका ताजा उदाहरण भारत सरकार द्वारा करायी गयी. जनगणना 2011 के औपबंधिक आंकड़े से सामने आया है. इन आंकड़ों के अनुसार पूर्व की जनगणना 2001 में वर्ष 1991 से 2001 के बीच जिले...
More »बढ़ते गरीब और बेमानी बहस - अश्वनी कुमार
देशभर के शहरों में रहनेवाले गरीबों के आंकड़े जुटाने के लिए एक जून से सात माह का सर्वे शुरू हो चुका है. इसके साथ ही गरीबों की पहचान के मानदंड पर बहस भी फ़िर छिड़ गयी है. यह विडंबना ही है कि तमाम योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या लगातार बढ़ रही है. शहरी गरीबों की गणना की खबरों के साथ ही गरीबी को लेकर जारी बहस फ़िर छिड़ गयी है....
More »आधी आबादी का सवाल
नई सदी में आर्थिक विकास की सबसे आकर्षक कहानी होने के भारत के रिकॉर्ड पर एक बदनुमा दाग अपने समाज में महिलाओं की हालत है। हर अध्ययन हमारा ध्यान इस चिंताजनक सूरत की तरफ खींचता है और इस कड़ी में सबसे ताजा सर्वे थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन का है, जिसमें महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगहों की सूची में भारत को चौथे नंबर पर रखा गया है। इस सूची में भारत के...
More »जन्म से बंधी सामाजिक बेड़ियां : हर्ष मंदर
लाखों महिलाएं, पुरुष और बच्चे आज भी उन अपमानजनक सामाजिक बेड़ियों में बंधे हुए हैं, जो उनके जन्म से ही उन पर लाद दी गई थीं। आधुनिकता की लहर के बावजूद आज भी भारत के दूरदराज के देहातों में जाति व्यवस्था जीवित है। यह वह व्यवस्था है, जो किसी व्यक्ति के जाति विशेष में जन्म लेने के आधार पर ही उसके कार्य की प्रकृति या उसके रोजगार का निर्धारण कर...
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