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आधार के तर्कों का किंतु-परंतु--- आर. सुकुमार

ऐसे समय में, जब आधार से संबद्ध तीन मामले उस संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए विचाराधीन हैं, जिसका अभी तक गठन ही नहीं हुआ, तब यह लाजिमी है कि हम आधार से जुड़े कुछ मूलभूत सवालों पर विचार करें। इस बात से इनकार करने का कोई आधार नहीं है कि इससे जुड़ी, खासतौर से निजता और सुरक्षा के बिंदु अहम हैं। कहने का आशय यह कि जरूरत...

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अब नई टेलीकॉम नीति लाने का वक्त-- राजीव चंद्रशेखर

देश में दूरसंचार के क्षेत्र में सुधार लागू होने का पच्चीसवां साल चल रहा है, जो अगले साल पूरा होगा। आधुनिक भारत के इतिहास में ये सुधार मील का महत्वपूर्ण पत्थर है। 1993 में ही चार प्रमुख महानगरों में निजी कंपनियों को सेल्यूलर टेलीफोनिंग के लाइसेंस दिए गए थे। यह वह समय था जब फोन कनेक्शन की वेटिंग लिस्ट 3-4 साल की होती थी और फोन से जुड़ी शब्दावली में...

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नदी पुनर्जीवन ही विकल्प-- सुरेश उपाध्याय

माना जाता है कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर ही हुआ है। लेकिन हम जिस दौर में जी रहे हैं और विकास की जिस अंधाधुंध दौड़ में शामिल हो गए हैं, उसने सबसे पहला हमला हमारी नदियों पर ही किया है। एक ओर नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है तो दूसरी ओर कई नदियां विलुप्ति के कगार पर हैं या विलुप्त हो चुकी हैं। नदियों के शुद्धीकरण...

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दलित बुजुर्ग का सवाल- गाय माता है तो मर जाने पर खुद क्यों नहीं उठाते?

एक साल पहले गुजरात के उना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों की गई पिटाई के वीडियो ने पूरे देश को झकझोर दिया था। ये घटना न केवल उन दलितों बल्कि दलित राजनीति के जीवन में भी निर्णायक मोड़ साबित हुई। पिछले साल 11 जुलाई को वशराम सरवैया (26), रमेश सरवैया (23), उनके चचेरे भाई अशोक सरवैया (20) और उनके रिश्तेदार बेचर (30) की कथित गौरक्षकों ने निर्मम पिटाई की थी।...

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मौत के बाद भी ‘दुधारू’ रह जाती है गाय-- प्रेम कुमार

दुधारू गाय की हत्या की बात सोचना भी पाप है. जो गाय दूध, दही, मिठाइयां, पनीर, खीर से लेकर गोबर, गोमूत्र देने और खेती-किसानी में काम आती हैं, घर के सदस्य जैसी होती हैं, घर की आमदनी होती है उस गाय को कोई मारे तो यह उसकी मूर्खता होगी. सवाल ये है कि फिर ऐसी मूर्खता हो क्यों रही है? गाय पर निर्भर लोग नहीं सोचते गोकशी की बात जो लोग...

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