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चुनाव बाद सिरे चढ़ेंगी विकास दर की चिंताएं- जयंतीलाल भंडारी

यह बजट से पहली आई खराब खबर है। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के अग्रिम अनुमानों में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2013-14 में आर्थिक विकास दर 4.9 प्रतिशत रहने की आशंका है। वैसे यह विकास दर पिछले वित्त वर्ष में दर्ज की गई 4.5 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से ज्यादा है, लेकिन इसके बावजूद यह निराशाजनक इसलिए है, क्योंकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पिछले साल आम बजट पेश...

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संसाधनों की कमी नहीं दूरगामी नीति का अभाव- रवि दत्त वाजपेयी

तीन माह से 3 साल के 70 } बच्चे रक्त-अल्पता से पीड़ित अगले 20-30 वर्षों में भारत को अपनी अन्न सुरक्षा के लिए खेती के आधुनिक तरीकों, बेहतर सिंचाई-प्रबंधन, पर्यावरण के अनुकूल बीज-खाद-कीटाणुनाशक का उपयोग, उदार आर्थिक सहयोग और ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर सड़क, बिजली, भंडारण की सुविधाओं, आम लोगों की क्र य शक्ति बढ़ाने में भारी निवेश की आवश्यकता पड़ेगी. आज पढ़िए छठी कड़ी.   भारत को आर्थिक महाशक्ति घोषित करने को...

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डूबते को तिनके का सहारा..

कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है। यह कहावत “निजो गृह-निजो भूमि” कार्यक्रम के हितग्राही पश्चिम बंगाल के भूमिहीन परिवारों पर सटीक बैठती है। इंटरनेशनल फूड एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स(2008) में पश्चिम बंगाल में भुखमरी की दशा को खतरनाक करार दिया था। समस्या से निपटने के दूरगामी उपाय के रुप में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य के भूमिहीन परिवारों को आवास और खेती-बाड़ी...

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कृषि-भूमि और विदेशी निवेश- के पी सिंह

जनसत्ता  : शहरी विकास मंत्रालय का प्रस्ताव है कि विदेशी कंपनियों को कृषि-भूमि खरीदने की अनुमति दी जाए ताकि शहरीकरण की प्रक्रिया में विदेशी निवेश हो और विकास रफ्तार पकड़ सके। मंत्रालय की दलील है कि शहरी आवास परियोजनाओं के लिए पहले से ही कृषि-भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, इसलिए विदेशी कंपनियों को भी इस उद््देश्य के लिए कृषि-भूमि खरीदने की अनुमति देने में कोई हर्ज नहीं है।...

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कटते जंगल किसका मंगल- मुस्कान

जनसत्ता 8 फरवरी, 2014 : विकास के पूंजीवादी-नवउदारवादी मॉडल की कुछ खास तरह की जरूरतें होती हैं। या कहें कि यह मॉडल आर्थिक संवृद्धि के एवज में कुछ खास बलिदानों की मांग करता है। हम देखते हैं कि भारत सरीखे अधिकतर विकासशील देश इन बलिदानों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अब सवाल है कि विकास की प्रचलित अवधारणा किन बलिदानों की मांग करती है? और ये बलि के बकरे...

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