संविधान में आरक्षण का प्रावधान सामाजिक-आर्थिक विषमता को पाटने के उद्देश्य से एक निश्चित अवधि के लिए किया गया था, पर बाद में आरक्षण नीति पर वोट बैंक की राजनीति हावी होती चली गयी. एक बार फिर चुनाव करीब है और आरक्षण के आधार एवं औचित्य पर बहस तेज हो गयी है. इस बहस के विभिन्न पहलुओं को सामने लाने की एक कोशिश. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर ने कहा था कि...
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भय पैदा करने वाला समाज- सुभाषिनी अली
नवंबर और दिसंबर के महीनों में शामली, मेरठ और मुजफ्फरनगर में महिलाओं की बड़ी सभाएं आयोजित की गईं। यह काफी आश्चर्यजनक बात है, क्योंकि, खासतौर से ऐसे इलाकों में, महिलाएं सभाओं में बड़ी मुश्किल से जा पाती हैं। उनके घरवाले इन सभाओं से घबराते हैं कि कहीं इनमें आने-जाने की आदत पड़ गई और औरतों को अपनी समान समस्याओं पर अधिक और आपस के भेद पर कम ध्यान जाने लगा,...
More »मातृभाषा के नए प्रश्न - परिचय दास
मातृभाषा अपने मां-पिता से प्राप्त भाषा है। उसमें जड़े हैं, स्मृतियां हैं व बिंब भी। मातृभाषा एक भिन्न कोटि का सांस्कृतिक आचरण देती है जो किसी अन्य भाषा के साथ शायद संभव नहीं। मातृभाषा के साथ कुछ ऐसे तत्व जुड़े होते हैं जिनके कारण उसकी संप्रेषणीयता उस भाषा के बोलने वाले के लिए अधिक मार्मिक होती है। यह प्रश्न इतिहास और संस्कृति के वाहन से भी संबद्ध है, जो संप्रेषण की प्रक्रिया...
More »सबसे ज्यादा अनपढ़ लोगों का देश- श्योराज सिंह बेचैन
यह दुखद सच्चाई पिछले दिनों एक सर्वेक्षण के जरिये सामने आई कि भारत अनपढ़ वयस्कों की सर्वाधिक आबादी वाला देश है। आंकड़ा बताता है कि अनपढ़ों की यह जनसंख्या उन्तीस करोड़ को छूने जा रही है। इससे अधिक चिंता का विषय और क्या होगा कि पूरी दुनिया की अनपढ़ आबादी का 37 फीसदी हिस्सा उस भारत में है, जो अपने आप को विश्व गुरु मानता रहा है, और जिस देश के...
More »गुजरात मॉडल की असलियत- कृष्ण स्वरुप आनंदी
जनसत्ता 19 फरवरी, 2014 : गुजरात का विकास चर्चा का विषय बना दिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि अन्य राज्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिए भी एक बेहतरीन अनुकरणीय मॉडल गुजरात ने प्रस्तुत किया है। उस मॉडल को देशव्यापी बनाने का सपना जोर-शोर से लोगों को दिखाया जा रहा है। विकास, सुशासन, समृद्धि, रोजगार सृजन जैसे शब्द तेजी से हवा में उछाले...
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