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पशुधन का कुपोषण से क्या रिश्ता है ?

हम जानते हैं कि कुपोषण का बोझ देश के जमीर और जेब दोनों पर भारी है।हम यह भी जानते हैं कि बाल-कुपोषण से छुटकारा पाना बड़े साहस और धैर्य की मांग करता है। लेकिन कुपोषण से छुटकारा पाने की स्थिति में जो आर्थिक फायदे होंगे- क्या हमें उन फायदों के बारे में पता है? एफएओ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत बाल-कुपोषण को खत्म करके अपनी आय में 28 अरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा कर सकता है।यह बड़े आर्थिक...

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कैसे हो जैव संपदाओं का संरक्षण- विष्णुदत्त नागर

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जैव विविधता को संरक्षण देने के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वर्ष 2010-11 को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित करने के बावजूद भारत की जैव संपदा को पश्चिमी देश लूट रहे हैं। हमारी सरकारों की उदासीनता पश्चिमी देशों का हौसला बढ़ा रही है। भारत समेत अन्य विकासशील देशों ने इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर आवाज उठाई और जैविक संपदा के संरक्षण और उपयोग के संबंध में अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क...

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विकास की छांव को तरसता मुंडा का गांव

सूबे के विकास का नक्शा तैयार कर रहे झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का अपना गांव बदहाल है.जीएस सिंह के साथ अनुपमा की रिपोर्ट सरायकेला-खरसावां. झारखंड और देश के बाहर इस इलाके की पहचान प्रसिद्ध छउ नृत्य कला के लिए है. यहां के छउ नृत्य गुरु पद्मश्री केदार साहू की ख्याति दुनिया भर में हुई. लेकिन अब सरायकेला-खरसांवा की एक और पहचान भी है. यह राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा...

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बच्चों की अनगढ़ भाषा में हमारी आकांक्षाओं के अक्स- नरेश गोस्वामी

देश के ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षण और बच्?चों की बोधगम्यता संबंधी एक अध्?ययन से पता चला है कि प्राथमिक कक्षाओं के ज्?यादातर बच्?चे गणित और भाषायी ज्ञान दोनों में ही कुशलता के जरूरी स्?तर से दो ग्रेड नीचे हैं। इस अध्?ययन के अनुसार बच्?चों में सही वाक्?य-रचना की क्षमता कम होती जा रही है। यूनेस्?को और यूनिसेफ द्धारा समर्थित इस अध्?ययन में आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और...

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भारत और इंडिया का फर्क- सुनील खिलनानी

हमारा यह कहना सही है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान और वैश्विक कारोबार में अपनी ऐतिहासिक हिस्सेदारी को फिर से प्राप्त कर रहा है। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ अन्य अहम तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, गरीबी खत्म करने, जनकल्याण के लिए कुछ मूलभूत सुविधाएं जुटाने और नए खतरों को कम करने की क्षमता अब हमारे भीतर है। यह क्षमता होने के बावजूद हमने...

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