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आर्थिक सुधार- नई मंजिलें- पी चिदंबरम

पिछले हफ्ते भारत में आर्थिक सुधार और भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के पच्चीस साल पूरे हुए। सरकार ने इस अवसर की अनदेखी की, और इसकी वजह समझना मुश्किल नहीं है: आर्थिक सुधार पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने शुरू किए थे, और तब भाजपा ने इसका पुरजोर विरोध किया था। (स्वदेशी जागरण मंच का वजूद आज भी है।) कल्पना करें कि 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी...

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शहरीकरण की विसंगतियां--- रमेश कुमार दूबे

शहरीकरण को लेकर सरकार का नजरिया यह है कि इस पर सियापा करने के बजाय इसे मौके के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके मुताबिक शहरों में गरीबी दूर करने की ताकत होती है और हमें इस ताकत को और आगे बढ़ाना चाहिए ताकि आर्थिक समृद्धि का स्वत: प्रसार हो। सुख-सुविधाओं की मौजूदगी के चलते शहर सदा से मनुष्य के आकर्षण के केंद्र रहे हैं। आज की तारीख में तो ये...

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मध्यप्रदेश में 3 साल के अंदर 25 फीसदी मंहगी होगी बिजली

बलवीर सिंह, ग्वालियर। बिजली की चोरी व तकनीकी हानि रोकने में नाकाम बिजली कंपनियां अब बिजली की दरें बढ़ाकर नुकसान की भरपाई करेंगी। इसके लिए सरकार अगले तीन साल में दरें 25 फीसदी तक बढ़ाने जा रही है। इससे जनता पर 55 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ आएगा। हर घर को 24 घंटे बिजली देने की केंद्र की योजना को लागू करने के लिए राज्य सरकार ने इस आशय के...

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माल देशी, मालिकाना विदेशी --- अनिल रघुराज

इकलौते तथ्य से सत्य नहीं निकल सकता. लेकिन अनेक तथ्यों को साथ मिला कर सत्य की समग्र तसवीर बनायी जा सकती है. मसला है देश के व्यापक आर्थिक विकास और रोजगार सृजन का. यह मसला केंद्र या राज्य सरकारों के लिए ही नहीं, देश के हर अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष या बच्चे, बूढ़े व नौजवान के लिए बेहद अहम है. आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के इस मसले को सुलझाने के चार...

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सब्सिडी : कल्याण या राजनीति? मुफ्तखोरी के दुष्चक्र में फंसता देश

ज्यादातर देशों में एक ओर जहां राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए मुफ्तखोरी को हथियार बनाती हैं, वहीं इसी दुनिया में स्विटजरलैंड जैसा भी एक देश है, जहां की जनता ने सरकार की इस पेशकश को ठुकरा दिया. दूसरी तरफ भारत में देखें तो राजनीतिक पार्टियां और सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देनेवाली नीतियों को प्रश्रय देती रहती हैं भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सब्सिडी एक जरूरी...

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