कहना कठिन है कि जेएनयू के कमउम्र छात्रों तथा परिसर की गोष्ठियों में कुछ प्रत्याशित सी बहसों तथा अचानक आए अनजान लोगों की उकसाऊ नारेबाजी से सरकार ने एकदम उखड़कर शिक्षकों सहित उस परिसर को लगभग अपना भीषण दुश्मन क्यों मान लिया होगा? इस बात के तूल पकड़ने पर बेवजह उसने देश भर के अकादमिक जगत तथा मीडिया के बडे हिस्से से बेवजह दुश्मनी साध ली, पर अब लगता है...
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लोकतंत्र पर उठते सवाल-- अनुपम त्रिवेदी
देश में चुनावी माहौल है. कुछ प्रदेशों में चुनाव हो रहे हैं और कुछ में शीघ्र होनेवाले हैं. लगभग हर छह माह में कहीं न कहीं चुनाव होते हैं और इन्हें लोकतंत्र के पर्व की संज्ञा दी जाती है. भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक कैलेंडर में यूं ही रोज कोई न कोई त्योहार होता है. उन त्योहारों में चुनाव रूपी यह सरकारी त्योहार भी जुड़ गये हैं. सभी यह त्योहार...
More »गांधी के सपनों का स्वराज-- श्री भगवान सिंह
वैसे महात्मा गांधी ‘स्वराज' या ‘स्वराज्य' संबंधी अपनी अवधारणा को जीवनपर्यन्त परिभाषित करते रहे, लेकिन जहां तक मैं समझ सका हूं, हिंदुस्तान के संदर्भ में उन्होंने जिस स्वराज की परिकल्पना की थी, उसके केंद्र में थी गांवों की स्वायत्त, स्वावलंबी अर्थ एवं प्रबंधन सत्ता। उनकी दृष्टि में गांवों की संपन्नता में ही देश की संपन्नता तथा गांवों की स्वायत्त पंचायती व्यवस्था में ही देश की सच्ची प्रजातांत्रिक छवि अभिव्यक्ति पा...
More »पर्यावरण और विश्व राजनीति-- बिभाष
पिछले नवंबर का महीना सिर्फ विमुद्रीकरण के ही लिये नहीं जाना जायेगा. नोम चॉम्स्की ने हाल में डेली मिरर को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि दो घटनाएं जो आठ नवंबर को घटित हुई हैं, बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. एक ओर जहां, अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना नया राष्ट्रपति चुना, वहीं दूसरी घटना है- मोरक्को के मार्राकेश शहर में 7 से 16 नवंबर तक यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन...
More »न्यायपालिका में आरक्षण-- डा. शैबाल गुप्ता
सफल पेशेवर होने के लिए मेधा तथा ज्ञान के मेल की जरूरत होती है. मगर चिकित्सा, पुलिस और खासकर न्यायपालिका जैसे पेशों हेतु ‘सामाजिक संवेदनशीलता' नामक एक अतिरिक्त अर्हता आवश्यक है. संवेदनशीलता वस्तुतः एक ‘सामाजिक धारणा' है, जिसे कोई व्यक्ति सामाजिक संरचना में उस वर्ग तथा जाति की स्थिति के आधार पर हासिल करता है, जिसके साथ वह रहता आया है. न्यायिक फैसले लेने में इसकी इतनी जरूरत है कि...
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