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न्यूज क्लिपिंग्स् | पर्यावरण और विश्व राजनीति-- बिभाष

पर्यावरण और विश्व राजनीति-- बिभाष

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published Published on Jan 11, 2017   modified Modified on Jan 11, 2017
पिछले नवंबर का महीना सिर्फ विमुद्रीकरण के ही लिये नहीं जाना जायेगा. नोम चॉम्स्की ने हाल में डेली मिरर को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि दो घटनाएं जो आठ नवंबर को घटित हुई हैं, बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. एक ओर जहां, अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप को अपना नया राष्ट्रपति चुना, वहीं दूसरी घटना है- मोरक्को के मार्राकेश शहर में 7 से 16 नवंबर तक यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज से संबद्ध कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज की हुई बाइसवीं सभा. इस सभा का मुख्य विचार बिंदु था- पेरिस एग्रीमेंट का क्रियान्वयन.


सभा के अंत में जारी उद्घोषणा में इसकी तारीफ करते हुए कहा गया है कि पेरिस एग्रीमेंट एक समावेशी, समतामूलक और सामूहिक कार्यक्रम है, जिसमें अलग-अलग देशों की परिस्थितियों के अनुसार उनकी क्षमता को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट जिम्मेवारियां तय की गयी हैं और सभी देश इसे संपूर्णता में लागू करने के लिए वचनबद्ध हैं. इस उद्घोषणा में तमाम पक्षों का आह्वान करते हुए 2030 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए सहयोग और प्रतिबद्धता की अपील की गई है. ऊपर से सब कुछ ठीक है दिखनेवाले उद्घोषणा से विभिन्न देशों की मंशाएं स्पष्ट नहीं होती हैं.


जलवायु परिवर्तन मुहिम की पृष्ठभूमि विवादों से भरी पड़ी है. पेरिस में हुए इक्कीसवें सम्मेलन में सभी देशों ने मिल कर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए एक पुख्ता कार्यक्रम दिया. अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति ने इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की. लेकिन, अमेरिका में नये राष्ट्रपति का चुनाव इन सारे प्रयत्नों और प्रतिबद्धताओं पर पानी फेरता नजर आ रहा है. रिपब्लिक कांग्रेस ने मौसम परिवर्तन विज्ञान को मात्र अटकलबाजी और निराधार कल्पना का विज्ञान मानते हुए पिछले सम्मेलन की बातों को मानने से इनकार कर दिया है.


रिपब्लिकन पार्टी का एजेंडा कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर किसी नियंत्रण के खिलाफ जाता है. उनके अनुसार मौसम परिवर्तन एजेंडा अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सेक्टर और लोगों के जीवन पर सरकारी नियंत्रण का उदारवादियों का पकाया हुआ वैश्विक षड्यंत्र है.


पर्यावरण आंदोलन को वामपंथी आतंकवाद तक कहा गया. यह विडंबना ही है कि रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ही दिसबंर 1970 में क्लीन एयर एक्ट पर हस्ताक्षर किया था और इसे ऐतिहासिक कदम तक बताया था. लेकिन, 1980 में रिपब्लिकन रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही पर्यावरण आंदोलन के ऊपर रूढ़िवादियों की मार पड़नी शुरू हो गयी. पर्यावरण सुधार के लिए आवंटित धनराशि में कटौती की गयी, साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा पर किये जा रहे शोधों को भी टाल दिया गया. यह विरोध इतना तीखा था कि जिमी कार्टर के समय ह्वाइट हाउस पर लगाये गये सोलर पैनल तक को उतार दिया गया. ऐसा कहा जाता है कि खनिज तेल, गैस और कोयला लॉबी इस रूढ़िवादी विचारधारा को अपना समर्थन दे रहे हैं. रिपब्लिकन अपने इस पक्ष को डिरेग्युलेशन के नाम से लागू कर रहे हैं.


नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वक्तव्य लगातार उसी चिंताजनक रूढ़िवादी अर्थव्यवस्था की ओर संकेत कर रहे हैं. ट्रंप न सिर्फ पर्यावरण मुहिम के खिलाफ हैं, नाभिकीय हथियारों की होड़ के पक्ष में भी खुल कर दिखायी दे रहे हैं. पूरी दुनिया इतनी चिंतित है कि कई हस्तियों और देशों ने बराक ओबामा से जाते-जाते कुछ ऐसा करने का भी आग्रह किया है कि ट्रंप इस पृथ्वी को नाभिकीय अस्त्रों से न उड़ा सकें.


जहां एक ओर, अमेरिका पर्यावरण संरक्षण की अवहेलना करने पर तुला हुआ है, वहीं दक्षिण एशिया पर मौसम परिवर्तन के बारे में इंटरगवर्नमेंटल पैनेल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी पांचवीं रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2005 में मुंबई में और 2008 में कोसी नदी में आयी बाढ़ का कारण मौसम परिवर्तन ही था.


कोसी नदी की बाढ़ के कारण 60 हजार लोग नेपाल में और 35 लाख लोग भारत में बेघर हुए थे. दक्षिण एशिया में दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी रहती है, बल्कि इस सदी के मध्य तक दुनिया की आधी आबादी दक्षिण एशिया में रह रही होगी. कई देश, कई शहर और बस्तियां कम ऊंचाई की जगहों पर अवस्थित हैं. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण बढ़ते तापमान की वजह से इस सदी के अंत तक समुद्र तल 88 सेमी तक बढ़ सकता है. इसी सम्मेलन में वर्ल्ड मेटेरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में वर्ष 2015-16 के दौरान अल-नीनो के कारण समुद्र तल में पंद्रह मिमी बढ़ोतरी की बात की गयी है. समुद्र तल में इस तेजी से उठान के कारण बांग्लादेश जैसा देश पूरी तरह से तबाह हो सकता है. बस्तियां और इन्फ्रॉस्ट्रक्चर डूबेंगे, गर्मी तथा अन्न और पानी की कमी के कारण मौतें बढ़ेंगी. करोड़ों लोग विस्थापित होंगे और अमेरिका जैसे देश इसके लिए जिम्मेवार होंगे.


एक तरफ, जहां अमेरिका पर्यावरण आंदोलन को असफल करने पर तुला हुआ है, वहीं चीन इस मुहिम को अपना नेतृत्व देता दिखायी दे रहा है. सभी देशों को अपनी-अपनी जिम्मेवारी के अनुसार सन् 2020 से पेरिस सहमति का क्रियान्वयन करना है. चीन ने 2020 तक नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के लिए एक बड़े कार्यक्रम की घोषणा कर दी है. चीन सौर ऊर्जा उत्पादन में सबसे बड़ा देश बन चुका है. इसी प्रकार फ्रांस ने भी कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए एक दीर्घावधि योजना तैयार की है. जर्मनी ने इस साल जुलाई में अपनी अध्यक्षता में आयोजित होने वाले जी-20 सभा में मौसम परिवर्तन को प्रमुख एजेंडा बनाने का निर्णय किया है.


नोम चॉम्स्की के शब्दों में पर्यावरण मुहिम में सहयोग से ट्रंप का इनकार पूरी दुनिया को विनाश की ओर ले जायेगा. बीता नवंबर एक विनाशकारी संकेत लेकर आया है. अमेरिका और अन्य देश जो दूसरे देशों की कीमत पर धनी बन रहे हैं, उन्हें जिद छोड़ कर पर्यावरण मुहिम में अपनी जिम्मेवारी निभानी ही पड़ेगी.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/924055.html


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