महाराष्ट्र के एक गांव में शुरू हुई हड़ताल अब देश भर में किसान विद्रोह का रूप लेती जा रही है. सवाल है कि क्या यह विद्रोह सिर्फ उग्र विरोध बन कर रह जायेगा या फिर खेती-किसानी के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा? इस विद्रोह की चिंगारी से सिर्फ बस और ट्रक जलेंगे या कि इस आग में तप कर कुछ नया सृजन होगा? एक बात तो तय है. अहमदनगर जिले के...
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ओझल बनायी जा रही औरतें-- मृणाल पांडे
जैसे-जैसे राजनीति और मीडिया का असर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह शक सर उठा रहा है कि राजनेताओं और मीडिया में अहंकार और खुद को भगवान समझने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. हाल में एक अंगरेजी चैनल में एक कार्यक्रम के दौरान सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने तमक कर एंकर को कहा कि वे जानते हैं कि इस चैनल का अपना (राजनीतिक, वैचारिक) एजेंडा है. एंकर ने इस पर उनसे...
More »प्रचारों पर टिकीं उपलब्धियां-- पवन कुमार वर्मा
संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है? हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस...
More »मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो...
More »भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण
धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम...
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