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न्यूज क्लिपिंग्स् | मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव

मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव

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published Published on Jun 7, 2017   modified Modified on Jun 7, 2017
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो मीडिया की मेहरबानी से बनी है, लेकिन उससे भी अधिक विपक्षियों के दिवालियेपन के कारण बढ़ी है.

पिछले कुछ दिनों में नरेंद्र मोदी की सरकार के तीन साल पूरे होने पर कई सर्वे आये हैं. इन सभी सर्वे ने आम जनता से बातचीत करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता काे जांचा-परखा है. साथ ही, सभी ने यह अनुमान भी लगाया है कि अगर लोकसभा चुनाव आज ही हो जायें, तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी. एक जमाने में मैंने खुद भी ऐसे कई सर्वे किये थे.

इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि चुनाव से दो साल पहले ऐसे किसी सर्वे की भविष्यवाणी को गंभीरता से ना लें. लेकिन, जनमत का रुझान और हवा का रुख बताने के लिए ये सर्वे बहुत ही उपयोगी होते हैं. अलग-अलग सर्वे में थोड़ा-बहुत अंतर है, इसलिए मैंने यहां सबसे विश्वसनीय सर्वे का सहारा लिया है, जो सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) लोकनीति द्वारा किया गया है.

तमाम सर्वे दिखा रहे हैं कि अपनी अभूतपूर्व जीत के तीन साल बाद भी नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की लोकप्रियता न सिर्फ बरकरार है, बल्कि तब से आठ प्रतिशत और बढ़ी ही है.

साल 2014 की तुलना में भाजपा को सबसे बड़ी बढ़त ओडिशा और बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों में मिली है. यह सच है कि यूपीए की दोनों सरकारें भी तीन साल के बाद लोकप्रिय थीं, लेकिन मोदी सरकार की लोकप्रियता मनमोहन सिंह सरकार से अधिक है. यह बड़ी बात है कि नोटबंदी से मोदीजी की लोकप्रियता घटने के बजाय बढ़ गयी है.

अगर भारतीय जनता पार्टी विरोधी इस पहले सच से मुंह चुराते हैं, तो भारतीय जनता पार्टी के समर्थक दूसरे सच से बचते हैं. वो मान लेते हैं कि अगर नरेंद्र मोदी लोकप्रिय हैं, तो जरूर उनकी सरकार ने कुछ ठोस काम करके दिखाये होंगे, और उनकी उपलब्धियां बहुत बड़ी होंगी. लेकिन ऐसा है नहीं. नरेंद्र मोदी सरकार अपने किसी भी चुनावी वादे पर खरी नहीं उतरी है.

मसलन, किसान को लागत से ड्योढ़ा दाम, हर युवा को रोजगार, महिलाओं को सुरक्षा, भ्रष्टाचार का खात्मा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में बड़ा सुधार आदि ऐसे बड़े मुद्दे हैं, जिन पर यह सरकार खरी नहीं उतरी है. इस सरकार की बहुप्रचारित योजनाएं अपने लक्ष्यों के नजदीक भी नहीं हैं. मसलन, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, फसल बीमा योजना आदि को अभी अपने लक्ष्य पूरे करने बाकी हैं. नरेंद्र मोदी को लोकप्रिय बतानेवाला सर्वे यह भी बताता है कि बेरोजगारी को लेकर इस समय देश में भारी चिंता है. लोग कह रहे हैं कि पिछले तीन साल में रोजगार के अवसर घटे हैं. वहीं किसानों की अवस्था पहले से और भी बुरी हुई है.

सवाल यह है कि ठोस उपलब्धि ना होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार इतनी लोकप्रिय क्यों है? नरेंद्र मोदी के विरोधी यह कहते हैं कि इसका कारण मीडिया द्वारा बनायी गयी मोदीजी की छवि है. इस बात में कुछ सच्चाई है. आज देश का मीडिया जिस तरह मोदीजी का महिमामंडन करने में लगा हुआ है, वैसा शायद राजीव गांधी के पहले एक-दो साल के बाद कभी नहीं हुआ. देश के मीडिया पर सरकार का जितना नियंत्रण है, उतना इमरजेंसी के बाद से कभी नहीं हुआ.

इस वक्त मीडिया मोदी को पूजने में लगा है, उनकी हर कमी पर पर्दा डालने को तत्पर है और भाजपा के इशारे पर विपक्षी दलों के विरुद्ध अभियान चलाने में जुटा हुआ है. रॉबर्ट वाड्रा के कुकर्मों का पर्दाफाश करने को तत्पर है, लेकिन बिड़ला-सहारा डायरी पर चुप्पी साध जाता है. मीडिया कपिल मिश्रा के हर आरोप को उछालने को तत्पर है, लेकिन व्यापमं घोटाले पर चुप है. इतना पालतू मीडिया शायद ही किसी प्रधानमंत्री को नसीब हुआ हो.

लेकिन, नरेंद्र मोदी की छवि सिर्फ मीडिया की मेहरबानी से नहीं बनी है. अगर माल बिकाऊ नहीं है, तो अच्छे से अच्छा विज्ञापन उसे बहुत देर तक बेच नहीं सकता. दरअसल, मोदीजी की सफलता का राज उसका विपक्ष है. जब मोदीजी की तुलना राहुल गांधी या अन्य नेताओं से होती है, तो उनका सितारा चमक उठता है.

सीएसडीएस का सर्वे दिखाता है कि अगर लोगों से बिना कोई नाम बताये अपने पसंदीदा प्रधानमंत्री का नाम लेने को बोला जाये, तो 44 प्रतिशत लोग नरेंद्र मोदी का नाम लेते हैं. उनके बाद सीधे राहुल गांधी का नंबर आता है सिर्फ नौ प्रतिशत पर. राहुल, सोनिया और मनमोहन मिल कर भी सिर्फ 14 प्रतिशत तक पहुंचते हैं. तीन साल पहले यह अंतर कहीं कम था- तब नरेंद्र मोदी 36 प्रतिशत थे, तो राहुल, सोनिया और मनमोहन 19 प्रतिशत थे. और कोई भी विपक्षी नेता 3 प्रतिशत भी पार नहीं कर पा रहा था. दो साल पहले अरविंद केजरीवाल 6 प्रतिशत तक पहुंचे थे, लेकिन अब बदनामी के ढेर में दबे केजरीवाल एक प्रतिशत से भी नीचे हैं.

आज राजनीतिक शून्य के अंधकार में मोदीजी का सितारा चमक रहा है. मोदी सक्रिय हैं, विपक्ष प्रतिक्रिया तक सीमित है. मोदी सकारात्मक दिखते हैं, विपक्ष नकारात्मक है. विपक्ष इस गलतफहमी का शिकार है कि मोदी का गुब्बारा एक दिन अपने आप फूटेगा. वे सोचते हैं कि खाली मोदी विरोध से मोदी का मुकाबला किया जा सकता है. उनकी रणनीति मोदी विरोधी महागठबंधन तक सीमित है. लगता है मोदी विरोधियों ने इतिहास नहीं पढ़ा है. आज हमारे लोकांतर की असली त्रासदी सत्तापक्ष का अहंकार नहीं, बल्कि विपक्ष का दिवालियापन है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/opinion/news/columns/story/1001273.html


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