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सरकारी राशन की दुकानों से गरीबों को अब मिलेगा मड़ुआ, सावां आैर कोदो

नयी दिल्ली : सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये ज्वार, बाजरा तथा अन्य पोषक मोटे अनाजों को वितरित करने का फैसला किया है. आधिकारिक आदेश के मुताबिक, गरीबों को पोषण सुरक्षा उपलब्ध कराने के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है. खाद्य कानून के तहत सरकार राशन की दुकानों के जरिये देश की 81 करोड़ जनता को गेहूं, चावल जैसे खाद्यान्नों को भारी सब्सिडी के साथ एक से तीन रुपये...

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प्राकृतिक आपदा से खेती-बाड़ी को कितना होता है नुकसान..पढ़ें इस नई रिपोर्ट में

एक नई रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को बीते दस सालों(2005 से 2015) के बीच प्राकृतिक आपदा से हुए फसल के नुकसान तथा पशुधन-उत्पादन में आयी कमी की वजह से 96 अरब डॉलर का घाटा उठाना पड़ा है. द इम्पैक्ट ऑफ डिजॉस्टर एंड क्राइसिज ऑन एग्रीकल्चर एंड फूड सिक्युरिटी शीर्षक यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन(एफएओ) का एक शोध-अध्ययन है. खाद्य सुरक्षा तथा कृषि पर प्राकृतिक आपदा के प्रभाव...

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पैदावार में घुलता जहर-- अभिजीत मोहन

यह राहत की बात है कि केंद्र सरकार कीटनाशकों के दुष्प्रभावों पर गंभीरता से विचार करते हुए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को संसद से पारित कराने की दिशा में विचार करने को तैयार है। इस विधेयक को संसद से स्वीकृति मिलना इसलिए भी जरूरी है कि देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन कीटनाशकों के खतरनाक इस्तेमाल से किसानों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। गौर करें तो विगत...

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सूरज की किरणों से बंधती एक उम्मीद-- विजय कुमार चौधरी

दुनिया अब फिर से सूरज की ओर देख रही है। फॉसिल फ्यूल के प्रदूषण से परेशान और ग्लोबल वार्मिंग की आशंकाओं से चिंतित दुनिया की सारी उम्मीदें अब सूर्य के प्रकाश पर ही टिक गई हैं। 11 फरवरी को नई दिल्ली में भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (इंटरनेश्नल सोलर एलायंस) के पहले शिखर सम्मेलन को इसी दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है। यह...

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महिला खेतिहरों के श्रम का अवमूल्यन क्यों-- ऋतु सारस्वत

हाल ही में जारी आर्थिक समीक्षा दो महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान खींचती है। एक यह कि कामकाजी महिलाओं की संख्या में गिरावट आई है। वर्ष 2005-06 में रोजगार में आ रही महिलाओं का प्रतिशत 36 था, जो कि कम होकर 2015-16 में 24 प्रतिशत रह गया है। दूसरा यह कि खेती, बागवानी, मत्स्य-पालन, सामाजिकी वानिकी में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने पर भी, उन्हें लंबे समय से उचित महत्त्व नहीं...

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