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न्यूज क्लिपिंग्स् | पैदावार में घुलता जहर-- अभिजीत मोहन

पैदावार में घुलता जहर-- अभिजीत मोहन

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published Published on Mar 23, 2018   modified Modified on Mar 23, 2018
यह राहत की बात है कि केंद्र सरकार कीटनाशकों के दुष्प्रभावों पर गंभीरता से विचार करते हुए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को संसद से पारित कराने की दिशा में विचार करने को तैयार है। इस विधेयक को संसद से स्वीकृति मिलना इसलिए भी जरूरी है कि देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन कीटनाशकों के खतरनाक इस्तेमाल से किसानों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। गौर करें तो विगत कुछ महीनों में ही कीटनाशकों के इस्तेमाल से तकरीबन तिरसठ किसानों की मौत हो चुकी है। पिछले साल महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में जहरीले कीटनाशकों से इक्कीस किसान मौत के मुंह में चले गए थे। गौर करें तो आए दिन इस तरह की हृदयविदारक घटनाएं विचलित करती रहती हैं। दरअसल, किसान अपनी फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं और वह जहर उनकी सांस के साथ शरीर में चला जाता है जिससे उनकी मौत हो जाती है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में ऐसे छियासठ कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, जो बेहद जानलेवा हैं।


हालांकि कई देशों में इस तरह के जानलेवा कीटनाशकों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में ये कीटनाशक अभी भी पंजीकृत किए जा रहे हैं। जबकि अनुपम वर्मा समिति तेरह कीटनाशकों पर पूरी तरह से रोक लगाने और वर्ष 2018 तक कुछ तकनीकी अध्ययन पूरा करने की सिफारिश कर चुकी है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कीटनाशक फेनीट्रोथयोन पर प्रतिबंध बना रहना चाहिए और तेरह कीटनाशकों का इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए। इन कीटनाशकों में बेनोमाइल, कार्बरील, डीडीटी डायाजिनोन, फेनरिमोल, फेथियोन, लिनुरान, एमआइएमसी, मिथाइल पैराथियान, सोडियम सायनाइड, थियोटोन, ट्राइडमोर्फ, ट्राइफ्लारेलिन इत्यादि शामिल हैं।


गौरतलब है कि 2016 में संसद के मानसून सत्र के दौरान कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2008 को चर्चा एवं पारित किए जाने के लिए कामकाज की सूची में शामिल किया गया था। लेकिन यह पारित नहीं हो सका। अगर सरकार इस विधेयक को संसद से मंजूरी दिलाने में सफल रहती है तो यह कीटनाशक अधिनियम, 1968 का स्थान लेगा। अच्छी बात यह है कि इस विधेयक में कीटनाशकों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है और इसमें खराब गुणवत्ता, मिलावटी या हानिकारक कीटनाशकों के नियमन एवं अन्य मानदंड निर्धारित किए जाने का उल्लेख है। इस विधेयक में उल्लेख है कि किसी भी कीटनाशक का तब तक पंजीकरण नहीं हो सकता जब तक कि उसके फसलों या उत्पादों पर पड़ने वाले प्रभाव तय नहीं होते। इसमें कीटनाशक निर्माताओं, वितरकों एवं खुदरा विक्रेताओं के लाइसेंस की प्रक्रिया भी तय की गई है।


यहां जानना आवश्यक है कि कीटनाशक उन रासायनिक या जैविक पदार्थों का मिश्रण होता है जिनका उपयोग कीड़े-मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। चूंकि कीड़े-मकोड़े फसलों को बर्बाद कर देते हैं और किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, इस लिहाज से कीटनाशकों का इस्तेमाल आवश्यक है। लेकिन यहां ध्यान देना होगा कि कई कीटनाशक ऐसे भी हैं जिनके इस्तेमाल से मानव शरीर और प्रकृति पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन्हें प्रतिबंधित किया जाना बेहद आवश्यक है। लेकिन यह घोर लापरवाही है कि पहले से प्रतिबंधित किए गए कीटनाशकों पर भी अभी तक पूरी पाबंदी नहीं लग सकी है और उन्हें धड़ल्ले से बेचा जा रहा है।


जहरीले कीटनाशकों पर निर्भरता इस हद तक बढ़ चुकी है कि फसल उगाने से लेकर भंडारण तक इन्हें इस्तेमाल में लाया जा रहा है। यही नहीं, अब तो खाद्यान्न सुरक्षित रखने के लिए विकिरण का भी इस्तेमाल किया जा रहा है और वह भी तब, जब यह प्रमाणित हो चुका है ऐसा करना मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालना है। विडंबना यह भी है कि अब फल और सब्जियों को पकाने और उन्हें तरोताजा बनाए रखने में भी इन जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है। कीमत में कम होने की वजह से किसानों द्वारा लगातार फोराटेक्स जैसे खतरनाक कीटनाशकों का छिड़काव सब्जियों और फलों पर किया जा रहा है। कीटनाशकों के छिड़काव से कीड़े-मकोड़े तो मर जाते हैं लेकिन सब्जियां और फल पूरी तरह जहरीले हो जाते हैं और मनुष्य की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है, वह खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ जाता है। कृषि वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का कहना है कि कीटनाशकों वाली सब्जियों और फलों के सेवन से त्वचा समस्या, सिरदर्द, अल्सर, कैंसर, डायरिया, दमा और मोतियाबिंद जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है जिनमें शारीरिक विकलांगता की आशंका बढ़ जाती है। महिलाओं में स्तन कैंसर, मासिक धर्म और गर्भाशय संबंधी बीमारियों के लक्षण उभरने लगते हैं।


कीटनाशकों से केवल मनुष्य प्रभावित नहीं हो रहा है, बल्कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण पर भी काफी बुरा असर पड़ रहा है। डीडीटी और इसके जैसे अन्य कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण पशु-पक्षियों के आवास और आबादी दोनों नष्ट हो रहे हैं। यह सर्वविदित है कि जहरीले कीटनाशकों से उत्पादित अनाज और फलों को मानव से पहले पशु-पक्षी इस्तेमाल करते हैं और उनका शरीर धीरे-धीरे जहरीला बन जाता है। इससे उनकी मौत तो होती ही है। अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से पशु-पक्षियों की प्रजनन क्षमता में भारी कमी आई है। अमेरिकी कृषि विभाग ने डीडीटी जैसे प्रभावी कीटनाशकों पर रोक लगा दी है। एक शोध के मुताबिक सारस, गौरैया, बगुले और जलकौवे जैसे पक्षियों की घटती आबादी का मूल कारण जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल ही है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि भूमि के एक वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में तकरीबन नौ लाख से ज्यादा बिना रीढ़ वाले जीव निवास करते हैं और ये वे जीव हैं जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इनमें किसानों का मित्र कहा जाने वाला केंचुआ भी शामिल है जो मिट्टी को उर्वर बनाने का काम करता है। लेकिन जहरीले कीटनाशकों के इस्तेमाल से अब इनके जीवन पर संकट आ गया है और साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी कम होती जा रही है।


जहरीले कीटनाशकों से पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि खेतों में जहरीले कीटनाशकों के इस्तेमाल से पेड़-पौधों की वृद्धि थम जाती है और धीरे-धीरे उनका नाश हो जाता है। कीटनाशकों के इस्तेमाल से पानी भी तेजी से दूषित और जहरीला बनता जा रहा है। ऐसे समय में जब पानी की उपलब्धता लगातार कम हो रही है और जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है, पानी का जहरीला होना कई तरह की समस्याओं को जन्म दे रहा है। मनुष्य की सर्वाधिक बीमारियों का मुख्य कारण दूषित जल ही है।


अच्छी बात है कि सरकार जहरीले कीटनाशकों पर रोक लगाने की दिशा में प्रयासरत है और फल-सब्जियों पर जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल रोकने के लिए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली द्वारा दो दर्जन से अधिक जहरीले कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। देश भर के कृषि एवं फल वैज्ञानिकों को इन प्रतिबंधित कीटनाशकों की सूची भी उपलब्ध करवाई गई है। लेकिन अगर इसके बावजूद जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल जारी है तो इनकी बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। किसानों को भी समझना होगा कि कीटनाशकों का उतना ही इस्तेमाल करें, जिससे कि उनकी फसलों पर लगने वाले कीड़े-मकोड़े मर जाएं और मनुष्य तथा प्रकृति पर उसका बुरा प्रभाव भी न पड़े। अगर किसानों को कीटनाशकों के इस्तेमाल का उचित प्रशिक्षण दिया जाए तो परिणाम लाभकारी होंगे।


https://www.jansatta.com/politics/opinion-about-pesticide-management-bill/610182/


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