-द वायर, विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में की गयी बंदी (लॉकडाउन) से अर्थव्यवस्था को 120 अरब डॉलर (करीब नौ लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हो सकता है. यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार प्रतिशत के बराबर है. उन्होंने राहत पैकेज की जरूरत पर जोर देते हुए बुधवार को आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान में भी कटौती की. उन्होंने कहा...
More »SEARCH RESULT
कोरोनावायरस और साफ पानी का महत्व
-डाउन टू अर्थ, 22 मार्च को विश्व जल दिवस है। नोवेल कोरोनो वायरस बीमारी (कोविड-19) हमारी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. ऐसे में, यह समझने की जरूरत है कि सब के लिए स्वच्छ और सुलभ तरीके से पानी की उपलब्धता कितना महत्वपूर्ण है। इस महामारी से बचने का एकमात्र अचूक उपाय यही है कि हम लगातार अपने हाथों को हर बार 20 सेकंड तक धोएं। यानी, साफ पानी रोगों...
More »ग्रामीणों के लिए दोहरी मार साबित होगी कोरोना महामारी
-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस (कोविड-19) बीमारी की वजह से हमारे समाज की असमानता सामने नहीं आई है। मुक्त बाजार काल में इसे अस्तित्व के खतरे के तौर पर पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। कोरोनावायरस की वजह से यह जरूर स्पष्ट हुआ है कि आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़े लोगों को स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कैसे करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, अगर हम अमेरिका की बात करें तो कई...
More »आवरण कथाः अर्थव्यवस्था पर कोरोना का कहर
-इंडिया टूडे, पश्चिम एशिया में मंडराते युद्ध के बादल छंटने लगे थे, अमेरिका ने ईरान के खिलाफ अपने रुख में नरमी के संकेत देने शुरू ही किए थे कि दुनियाभर में एक दूसरी आपदा ने पैर पसार लिए. 12 मार्च तक, नए कोरोना वायरस कोविड-19 से 120 देशों और विभिन्न क्षेत्रों के 1,31,571 लोग संक्रमित हो चुके थे और दुनियाभर में 4,936 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी. चीन...
More »आर्थिक निराशा में घिरा बहुसंख्यकवादी देश बन गया है भारतः मनमोहन सिंह
-बीबीसी हिंदी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक संपादकीय लेख में कहा है कि भारत उदारवादी लोकतंत्र के वैश्विक उदाहरण से आर्थिक निराशा में घिरा बहुसंख्यकवादी देश बन गया है. द हिंदू में प्रकाशित संपादकीय में मनमोहन सिंह ने कहा कि वो भारी मन से ये बात लिख रहे हैं. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत इस समय सामाजिक द्वेष, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य महामारी के तिहरे ख़तरे का सामना...
More »