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जीएम सरसों से तिलहन में आत्मनिर्भरता की दरकार

गाँव कनेक्शन, 3 नवम्बर देश में तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए अब जीएम सरसों की खेती होगी। भारत की जेनेटिक इंजीनियरिंग ऑपरेशन कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफायड (जीएम) सरसों की नई किस्म डीएमएच 11 को क्षेत्र परीक्षण के लिए जारी कर दिया गया है। पिछले अनुभवों के आधार पर देखा जाये तो भारत में अब तक जीएम फसल के रूप में सिर्फ बीटी कॉटन को ही अनुमति दी...

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जलवायु परिवर्तन के चलते पहले से कहीं ज्यादा होंगें इंद्रधनुषों के दीदार

डाउन टू अर्थ,1 नवम्बर शायद ही कोई ऐसा प्रकृति प्रेमी होगा जिसे इंद्रधनुष की सतरंगी आभा अच्छी न लगती हो। आसमान में जब इंद्रधनुष नजर आता है तो सबकी नजरें उसी पर टिक जाती हैं। आपमें से बहुत से लोगों ने इसे देखा भी होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जलवायु में आते बदलावों के चलते धरती पर पहले से कहीं ज्यादा इंद्रधनुष नजर आएंगें।  इस बारे में हवाई विश्वविद्यालय से...

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कपास की जीएम किस्म बॉलगार्ड टू राउंडअप रेडी फलेक्स को जीईएसी की मंजूरी की तैयारी

रूरल वॉयस, 29 अक्टूबर जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) द्वारा सरसों की जीएम किस्म डीएमएच-11 की इनवायरमेंटल रिलीज की सिफारिशों के 26 अक्तूबर को सार्वजनिक होने के बाद से जीएम फसलों के विरोध में कई संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। कृषि वैज्ञानिक जीईएसी के इस कदम से काफी उत्साहित हैं। इसी बीच इस बात की संभावना बढ़ गई है कि जीईएसी की अगली बैठक में कपास की हर्बिसाइड टॉलरेंट...

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कश्मीर के झरनों का महत्त्व और उनके संरक्षण की आवश्यकता

मोंगाबे हिंदी, 17 अक्टूबर नूरा, कश्मीर में श्रीनगर के बुर्जमा क्षेत्र में स्थित एक स्थानीय झरने ‘अस्तन नाग’ के पास घूम रही हैं। वह कुछ देर रुकती हैं और झरने की ओर जाने लगती हैं। यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। अंजुली भर पानी पीते हुए वह कहती हैं, “इस झरने के पाक (साफ़) होने के बारे में बताने के लिए इसका नाम ही काफी है। अस्तन का मतलब तीर्थ, और...

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अपर्याप्त क्लाइमेट फाइनेंस के बीच, परिभाषा पर जारी है विकासशील देशों का संघर्ष

कार्बनकॉपी, 15 अक्टूबर साल 2024 तक दुनिया को एक नया जलवायु वित्त लक्ष्य (क्लाइमेट फाइनेंस टार्गेट) निर्धारित करना है — यानि वह राशि जो विकसित देशों द्वारा गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए दी जानी है। भारत की मांग है कि इसे सालाना 1 लाख करोड़ डॉलर तक बढ़ाया जाए। यह दूर की कौड़ी है, क्योंकि विकसित देश पिछले दस वर्षों में 100 अरब डॉलर सालाना प्रदान करने में...

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