संगठित क्षेत्र में रोजगार में कमी के रुझान साल 2017-18 के पहली तिमाही में भी जारी रहे. रोजगार के रुझानों से संबंधित हाल की नई रिपोर्ट से इस बात के संकेत मिलते हैं.तिमाही रिपोर्ट छठे दौर की गणना पर आधारित है और इसे लेबर ब्यूरो ने जारी किया है. रिपोर्ट में 1 जुलाई 2017 तक की स्थितियों का आकलन है. ब्यूरो की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 की...
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शहरीकरण के बढ़ते खतरे--- देवेंद्र जोशी
अनियोजित शहरीकरण आज किसी एक प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है। आजादी के सत्तर सालों में जहां कस्बे शहर, शहर नगर और नगर महानगर बनते चले गए, वहीं गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। गांव आज भी गांव ही है। वही आबोहवा, आंचलिक संस्कृति, एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा बंटाने का आत्मीय भाव, अभाव में भी संतुष्टि और इस सबसे बढ़ कर छोटी-सी घटना...
More »युवा केंद्रित बजट से मिलेगी मजबूती-- वरुण गांधी
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के 2017 के आंकड़ों के अनुसार भारत में आधिकारिक रूप से 1.8 करोड़ बेरोजगार हैं, जिनमें अधिकांश युवा हैं. श्रम और रोजगार मंत्रालय की बीते साल की रिपोर्ट बताती है कि संगठित क्षेत्र में रोजगार, कुल रोजगार का सिर्फ 10.1 फीसद है, जबकि हमारे 60 करोड़ से अधिक कामगारों को असंगठित क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है, जहां सीमित सामाजिक सुरक्षा मिलती है और न्यूनतम वेतन का...
More »आर्थिक विषमता के बीच विकास का सच-- राजकुमार सिंह
एक और गणतंत्र दिवस के जश्न की तैयारी। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की शक्ति और शौर्य का राजपथ पर शानदार प्रदर्शन होगा। हमेशा की तरह भारतवासी तो इसके साक्षी बनेंगे ही, अंतर्राष्ट्रीय संगठन आसियान के दस सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख भी इस मौके पर खास मेहमान होंगे। बेशक स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हमारे राष्ट्रीय पर्व हैं। हमें इन्हें समारोहपूर्वक मनाना ही चाहिए। अपनी उपलब्धियों पर गर्व...
More »महानगरों के दड़बे-- अभिषेक कुमार
भारत जैसे आबादीबहुल देश में रोटी और कपड़े के बाद तीसरी सबसे अहम जरूरत मकान की उपलब्धता का इस वक्त क्या हाल है, इसका अंदाजा सरकारी आवासीय योजनाओं में आवेदकों की संख्या से होता रहा है। पर इन योजनाओं में फ्लैट के नाम पर काल कोठरी या मुर्गी के दड़बे जैसा घर देने की जो परंपरा दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने पिछली दो योजनाओं से शुरू की, उसका नतीजा यह...
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