जलवायु परिवर्तन, भूख, कुपोषण, बढ़ती गरीबी, घटते संसाधन, ये सभी ऐसी समस्याएं हैं जिनसे आज सारी दुनिया जूझ रही है। अरबों रुपए इन समस्याओं के हल के लिए अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों पर खर्च किए जा चुके हैं। आगे भी किए जाएंगे। पर हल तब भी शायद ही निकले। तो क्या किया जाए? गांधी-विचारों में रची-बसी, स्वाश्रयी महिला सेवा संघ (सेवा), अमदाबाद की संस्थापक और गुजरात विद्यापीठ की चांसलर इला भट्ट के...
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नोटबंदी के एक महीने का सच-- कन्हैया सिंह
आठ नवंबर को शुरू हुए 500 व 1000 रुपये के नोटों के डीमॉनेटाइजेशन (जिसे आम भाषा में नोटबंदी कहा जा रहा है) के बाद से देश में जो हो रहा है, उसका विश्लेषण काफी कठिन है। यही वजह है कि हर अर्थशास्त्री इसे अलग ढंग से देख रहा है। इसके नतीजों का आकलन अलग ढंग से कर रहा है। ऐसे मौकों पर हर अर्थशास्त्री अपने ‘परसेप्शन' और ‘स्पैक्यूलेशन' यानी अपनी...
More »वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे : देश में जन्म लेनेवाला हर तीसरा बच्चा है प्रीमेच्योर
भारत समेत दुनिया के अनेक विकासशील देशों में शिशुओं की दशा खराब है. हालांकि इसके अनेक कारण हैं, लेकिन प्रीमेच्योर यानी समयपूर्व जन्म होना शिशुओं की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है. इसके खतरों के प्रति आगाह करने और उससे बचाव के प्रति लोगों में जागरूकता कायम करने के मकसद से दुनियाभर में 17 नवंबर को ‘वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे' का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर आज के...
More »झारखंड की संभावनाओं भरी राह-- अलख नारायण शर्मा
एक राज्य के तौर पर झारखंड ने सोलह साल का सफर तय कर लिया है. इस दौरान एक अलग राज्य के तौर पर झारखंड ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है. लेकिन, नये राज्य के बनने के बाद से झारखंड से जैसी उम्मीद की जा रही थी, वैसा कुछ हो नहीं हो पाया. फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि इस दौरान राज्य कई मामले में आगे बढ़ा है....
More »संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह
वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...
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