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दास्तां जन औषधि केंद्र की; शुरुआत, चुनौतियां और भविष्य!

जन स्वास्थ्य' का विषय राज्य सूची के अंतर्गत आता है. लेकिन भारत में लोक कल्याणकारी सरकार की अवधारणा है. इसलिए केंद्र सरकार द्वारा भी जन स्वास्थ्य को वरीयता दी जाती है. नतीजन सन् 2008 में "जन औषधि केंद्र" को शुरू किया जाता है. जहां सस्ते दामों पर सामान्य दवाइयां मिल सकें. 7 मार्च, 2022  को जन औषधि दिवस के उपलक्ष में एक कार्यक्रम होता है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जन औषधि...

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उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जलवायु परिवर्तन का कहर

जनचौक, 06 अगस्त अंधाधुंध सड़क निर्माण और जल विद्युत परियोजनाएं उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को बढ़ा रही हैं जो हाल के वर्षों में बादल फटने और अचानक बाढ़ आने (flash floods) के रूप में प्रकट हो रहा है। हर गुजरते साल के साथ, आपदाओं की आवृत्ति और परिमाण दोनों और अधिक गंभीर होते जा रहे हैं। यह कैसे जमीनी स्तर पर लोगों के जीवन को प्रभावित कर...

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भारत में चावल की खेती लड़खड़ाई, दुनिया की खाद्य आपूर्ति गड़बड़ाई?

क्विंट हिंदी, 03 अगस्त चावल वैश्विक खाद्य आपूर्ति (global food supply) के लिए अगली चुनौती के रूप में उभर सकता है, क्योंकि भारत के कुछ हिस्सों में बारिश की कमी देखने को मिली है, साथ ही देश में पिछले तीन सालों में धान की खेती का बुआई क्षेत्र सबसे कम हो गया है. भारत के चावल उत्पादन (rice production) के लिए खतरा ऐसे समय में आया है, जब देश खाने की...

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राजस्थान, गुजरात जैसे कई राज्यों में लम्पी स्किन डिजीज से हो रही पशुओं की मौत, पशुपालकों के सामने आजीविका का संकट

गाँव कनेक्शन, 02 अगस्त   राजस्थान के सबसे अधिक गोवंश की आबादी वाले जिले में इन दिनों पशुपालकों के बीच डर का माहौल है, वो समझ नहीं पा रहे हैं कि वो इस समय क्या करें, जिससे उनके पशुओं को लम्पी स्किन डिजीज से बचाया जा सके। राजस्थान के बीकानेर जिले के लूणकरणसर तहसील के रोझा गाँव के विजय पाल भी उन्हीं में से एक हैं। 40 वर्षीय विजय पाल की दो...

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बापू के पास है घायल लोकतंत्र की औषधि

जनचौक,02 अगस्त  बड़ी संख्या में लोग मानने लगे हैं कि भारतीय लोकतंत्र एक संकट के दौर से गुज़र रहा है। लोकतान्त्रिक संस्थाओं की कार्य शैलियाँ बदल रही हैं, कार्यकारिणी और न्यायपालिका के काम-काज में अनावश्यक हस्तक्षेप हो रहा है और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दखलंदाजी बढ़ती जा रही है। पाठ्यपुस्तकें बदली जा रही हैं और इतिहास को तोड़-मरोड़ कर बच्चों के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।...

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