कोलकाता : त्योहारों के मौसम में अलग अलग तरह के मेले लगना आम बात है लेकिन बाल विवाह के गैरकानूनी होने के बावजूद जनजातीय पश्चिम मिदनापुर में बाल विवाह मेले आयोजित किए जाते हैं जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ आती है. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘सुचेतना’ की रिपोर्ट के अनुसार जनजातीय बाल विवाह के ऐसे मेले उत्सवों के इस मौसम में हर वर्ष...
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मरती भाषाओं के दौर में- शेखर पाठक
जनसत्ता 13 सितंबर, 2013 : कभी रघुवीर सहाय ने कहा था, ‘न सही कविता मेरे हाथ की छटपटाहट सही’। यही बात भाषा के बारे में कही जा सकती है। सिर्फ मनुष्य अपनी छटपटाहट को भाषा यानी शब्द दे सका है। यह कहानी सत्तर हजार साल पहले शुरू होती है, हालांकि लिपियों का संसार करीब पांच हजार साल पहले बनना शुरू हुआ। आज भाषा मानव अस्तित्व की अनिवार्यता और पहचान हो...
More »पिछड़े राज्य का दर्जा पाएंगे यूपी-बिहार
नई दिल्ली [नितिन प्रधान/जयप्रकाश रंजन]। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा गढ़ कर केंद्र सरकार ने एक नया राजनीतिक दांव चलने का मन बना लिया है। बहुत संभव है कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर जब पिछड़े सूबों की नई परिभाषा तय की जाए तो उसमें बिहार केसाथ ही उत्तर प्रदेश तथा कुछ अन्य बड़े राज्य भी शामिल हो जाएं। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा तय करने के लिए गठित समिति ने शनिवार...
More »गरीबी रेखा या भुखमरी की रेखा- अनिन्दो बनर्जी
देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करनेवालों के बारे में योजना आयोग द्वारा जारी आंकड़ों की कोई और उपयोगिता हो न हो, यह बदहाली के स्वीकार्य मापदंड नहीं हो सकते. जिस देश में करीब 46 फीसदी बच्चे कुपोषण से प्रभावित हों, जहां करीब 40 प्रतिशत परिवार पूर्णत: भूमिहीन या एक एकड़ से कम जमीन के मालिक हों, जहां 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का गुजारा असंगठित क्षेत्र में...
More »वे आदिवासियों के हितैषी नहीं- विनोद कुमार
तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...
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