हाल ही में प्रकाशित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकडे़ हमारा उत्साह नहीं बढ़ाते, खासकर तब, जब हम इनको भारत की आर्थिक प्रगति के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। भारत में प्रत्येक तीसरा शिशु कुपोषित है और मातृत्व-काल की हरेक दूसरी महिला अनीमिया से ग्रसित है। और ऐसा तब है, जब हम कुपोषण से सभी मोर्चों पर लड़ रहे हैं- स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिये, स्वच्छता के...
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गौरी लंकेश मर्डर: विचारधारा बनाम गोली-- शेखर गुप्ता
गौरी लंकेश हत्याकांड के बारे में कई चीजें हैं। एक, वे शक्तिशाली वैचारिक नेता थीं। धुर वाम-उदार विचारधारा की निर्भीक तर्कवादी थीं। दो, नियमित रूप से उन्हें दी जाने वाली धमकियों के बाद भी साहस के साथ अपनी बात कहती थीं। तीन, जैसाकि ध्रुवीकृत वातावरण में होता है, उनसे सहमत होने वाले पूरे जुनून से उनके साथ थे। जो असहमत होते वे इस वैचारिक अखाड़े की दूसरी ओर से जवाब...
More »चलो, चलें गांव की ओर?-- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
सत्तर के आखिरी दशक में मेरी मुलाकात अस्सी साल के बुजुर्ग शिक्षाविद श्रीमान जीवन नाथ दर से हुई थी. मैं जिस विद्यालय की आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ता था, ये कभी वहीं प्राचार्य हुआ करते थे. कहते हैं कि जब बिहार सरकार ने भारत सरकार की सलाह पर इस प्रयोगात्मक विद्यालय खोलने का निर्णय लिया, तो पंडित नेहरू ने उनसे यहां आने का आग्रह किया था. शांतिनिकेतन के तर्ज पर बिना...
More »बाढ़ और राजनीति का मौसम --- प्रेम कुमार
बाढ़ ने भले ही देश में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया हो या रेडक्रॉस ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश में आयी बाढ़ को दक्षिण एशिया में गंभीर मानव संकट करार दिया हो, लेकिन भारत की राजनीति इस बाढ़ से सूखी है. ऐसा लगता है कि देश की राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अकेले बिहार में 1 करोड़ से ज्यादा लोग, तकरीबन पूरा...
More »बाढ़ प्रबंधन : नदी प्रबंधन के सिवाय कोई चारा नहीं-- ज्ञानेन्द्र रावत
बाढ़ एक ऐसी आपदा है, जिसमें हर साल सिर्फ करोड़ों रुपयों का नुकसान ही नहीं होता, बल्कि हजारों-लाखों घर-बार तबाह हो जाते हैं, लहलहाती खेती बर्बाद हो जाती है और अनगिनत मवेशियों के साथ इंसानी जिंदगियां पल भर में अनचाहे मौत के मुंह में चली जाती हैं. अक्सर माॅनसून के आते ही नदियां उफान पर आने लगती हैं और देश के अधिकांश भू-भाग में तबाही मचाने लगती हैं. जब-जब बाढ़...
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