जनसत्ता 26 अगस्त, 2014 : आदिवासी समाज के बारे में इधर हमारी दृष्टि बदली है। बावजूद इसके आदिवासी बहुल इलाकों के बाहर आदिवासी समाज के बारे में अब भी एक कौतूहल का भाव रहता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना दिलचस्प होगा कि गैर-आदिवासी समाज आज भी आदिवासी समाज को किस रूप में देखता है। राजनेताओं की नजर में आदिवासी समाज की अहमियत क्या है, इसे हम कुछ उदाहरणों से...
More »SEARCH RESULT
एक गांव जहां लड़कों से दोगुनी लड़कियां
वर्ष 2011 की जनगणना में हरियाणा में छह वर्ष तक के बच्चों के लिंगानुपात का जो आंकड़ा सामने आया वह चिंता में डालने वाला था. 1000 लड़कों पर महज 834 लड़कियां थीं. राज्य में यह स्थिति पिछले कई दशकों से है. लेकिन, कुछ गांवों से ऐसी खबरें आयी हैं जो हालात बदलने की उम्मीद पैदा करती हैं. लिंग अनुपात के मामले में देश में सबसे बुरी स्थिति हरियाणा की है. यहां...
More »वंचित भारत की कहानी- इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट की जुबानी
‘अतुल्य भारत' के भीतर एक वंचित भारत रहता है,दलित और आदिवासी समुदाय इसी वंचित भारत के वासी हैं। क्या इस वंचित भारत का निर्माण राज्यसत्ता के हाथों जीवन के लिए जरुरी बुनियादी सेवा-सामानों से लोगों को बेदखल करके हुआ है? जैसा कि नाम से ही जाहिर है,इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट 2013-14 का एक निष्कर्ष यह भी है! (कृपया देखें नीचे दिया गया रिपोर्ट की भूमिका की लिंक) मिसाल के लिए इन...
More »बेदखली का शिकार ‘वंचित भारत’- चंदन श्रीवास्तव
सत्य अनुभव की चीज है, तथ्य आकलन की. तथ्य यह है कि भारत के भीतर एक वंचित भारत रहता है और सत्य यह कि इस वंचित भारत का निर्माण उसे जीवन जीने के लिए जरूरी बुनियादी सेवाओं-सुविधाओं से बेदखल करके हुआ है. बुनियादी सेवा-सुविधाओं से बेदखली के विराट आयोजन का ही नतीजा है कि इस मामले में देश के कुछ समुदाय शेष की तुलना में कोसों पीछे हैं. मिसाल के...
More »जातीय विद्वेष की जड़ें- विनोद कुमार
जनसत्ता 16 मई, 2014 : असम की जातीय हिंसा पर कोई सार्थक बातचीत या चर्चा शुरूकरने का खतरा यह है कि कहीं आप अल्पसंख्यक विरोधी करार न दे दिए जाएं। वह भी उस वक्त जब असम में जातीय हिंसा में लोगों के मरने का सिलसिला साल दर साल बढ़ता गया है। ताजा हिंसा इत्तिफाक से मोदी के उस दौरे के तुरंत बाद शुरूहुई, जिसमें उन्होंने घुसपैठियों को देश से निकाल...
More »