वे अखबार नहीं पढ़ सकते. दो-चार पांच पंक्तियां लिख नहीं सकते. अगर कोई सामान्य बात भी लिखवाना हो तो किसी दूसरे की मदद लेते हैं. किसी तरह अपना हस्ताक्षर कर लेते हैं या एकाध टूटी-फूटी पंक्ति लिख लेते हैं. लेकिन उन पर दुनिया के प्रख्यात विश्वविद्यालय कैंब्रिज के छात्र भी शोध करते हैं. अपनी पीएचडी की थिसिस में उनके कार्यो व पर्यावरण संरक्षण के साथ ग्रामीण विकास के लिए उनके...
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निर्मल गंगा की सार्थक धारा- जैको वल्विस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सबसे पवित्र नदी को साफ करने का वादा किया है। वाराणसी से चुनाव लडम्कर एक तरह से उन्होंने इस असंभव से लगने वाले मुद्दे पर अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगा दिया। गंगा की जो हालत है, वह भारत के अंतर्विरोधों का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक तरफ तो देश की इस सबसे पावन नदी की लोग पूजा करते हैं, इसके जल को सबसे पवित्र...
More »जिनको हाशिए पर भी जगह नहीं- अतुल चौरसिया
हिसार के पश्चिमी छोर पर स्थित एक विशाल फॉर्महाउस विरोधाभासों की जमीन है. इसके आधे हिस्से में एक शानदार कोठी, लॉन और पोर्टिको बने हैं जबकि बाकी का आधा हिस्सा बेतरतीब काली पॉलीथीन से ढंकी करीब 60-70 झुग्गियों से पटा हुआ है. जहां-तहां पानी के गड्ढे हैं जिनमें मच्छर और मक्खियां बहुतायत में पल-बढ़ रहे हैं. इसी झुग्गी बस्ती में अपनी कुछ मुर्गियों और दो सुअरों के साथ 80 साल...
More »कालाहांडी में बार-बार चढ़ती काठ की हांडी- सलमान रावी
शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
More »विकास की होड़ में बेसुध- अभय मिश्र
जनसत्ता 6 फरवरी, 2014 : भारतीय जनता पार्टी के गंगा समग्र अभियान की सर्वेसर्वा उमा भारती ने पर्यावरणविद अनुपम मिश्र से आंदोलन के भविष्य की रूपरेखा पर सलाह मांगी, जिसे वे जनता के सामने संकल्प के तौर पर रख सकें। अनुपमजी ने कहा कि आप अच्छा काम कर रही हैं लेकिन कोई भी बड़ी घोषणा करने से बचिए। थोड़ा रुक कर वे बोले, आज आप कोई बड़ा संकल्प ले लेंगी...
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