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सबसे बड़े हिरासती नरसंहार का सच- विभूति नारायण राय

हाशिमपुरा नरसंहार में आये कोर्ट के फैसले के बाद, भारतीय राज्य के लिए यह परीक्षा की घड़ी है. यदि आजादी के बाद के इस सबसे बड़े हिरासती नरसंहार में वह हत्यारों को सजा नहीं दिला पाया, तो उसका चेहरा पूरी दुनिया में स्याह हो जायेगा. उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार के आरोपित जवानों को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने ठोस सबूतों के...

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अभिव्यक्ति का अधिकार

जनसत्ता,(संपादकीय)पिछले कुछ सालों में इस पर काफी चिंता जाहिर की जा चुकी है कि फेसबुक, ब्लॉग, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के मंचों पर कुछ टिप्पणियों के आधार पर जिस तरह सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है, उसका देश के लोकतांत्रिक ढांचे और बुनियादी उसूलों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। खासकर सूचना तकनीक कानून की धारा 66-ए पर कई सवाल उठाए गए और अदालतों में इसके खिलाफ...

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अपराध की उम्र और हमारी समझ- कविता कृष्णन

जहां तक महिलाओं के अधिकार का सवाल है, 'सामान्य समझ' अक्सर गलत साबित होती है। इस मामले में हमें लीक से हटकर सोचने की जरूरत है, खास तौर पर बलात्कार के मामले में यह ज्यादा सच है। मोदी मंत्रिमंडल द्वारा किशोर न्याय कानून में संशोधन के प्रस्ताव का उदाहरण लें, जिसमें 16 से 18 वर्ष के किशोरों के खिलाफ मामला वयस्कों की अदालत में चलाए जाने और संगीन अपराधों में...

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प्रवीर चंद्र भंजदेव : अा‌‌दिवासी आंदोलन- पवन वर्मा

आदिवासियों की दशा समझने और सुधारने के लिए आजादी के बाद कई समितियां बनी हैं इनमें पहली मानवशास्त्री वेरियर एल्विन की अध्क्षता में बनी थी. और पहला आयोग कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष यूएन धेबर की अध्यक्षता में 1960 में बना. लेकिन शुरुआत में ही ये प्रयास खोखले साबित होने लगे. इसका नतीजा यह रहा कि 1960-70 के दशक के दौरान बस्तर में आदिवासी आंदोलन में भारी उभार देखा गया. इसका नेतृत्व बस्तर...

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सुननी होगी दलितों की आवाज- पत्रलेखा चटर्जी

रामविलास पासवान और उदित राज आजकल सुर्खियों में हैं। वजह यह है कि पासवान ने जहां भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया है, वहीं उदित राज ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। आम चुनाव से ठीक पहले ऐसी घटनाएं लाजिमी हैं। तो आखिर क्या वजह है कि दूसरों के बजाय पासवान और उदित राज ज्यादा चर्चा का विषय बने हुए हैं। दरअसल राजनेताओं की सोच यह है...

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