जनसत्ता 16 मई, 2014 : असम की जातीय हिंसा पर कोई सार्थक बातचीत या चर्चा शुरूकरने का खतरा यह है कि कहीं आप अल्पसंख्यक विरोधी करार न दे दिए जाएं। वह भी उस वक्त जब असम में जातीय हिंसा में लोगों के मरने का सिलसिला साल दर साल बढ़ता गया है। ताजा हिंसा इत्तिफाक से मोदी के उस दौरे के तुरंत बाद शुरूहुई, जिसमें उन्होंने घुसपैठियों को देश से निकाल...
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उतने बीमार भी नहीं हैं बीमारू राज्य- सुभाष गाताडे
कई बार कुछ सर्वेक्षण ऐसे नतीजे को सामने लाते हैं, जो हमारे सहज बोध से विपरीत जान पड़ते हैं। भारत के मानव विकास सूचकांक के ताजे आंकड़े इसी की मिसाल हैं। योजना आयोग के अंतर्गत कार्यरत इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड मैनपावर रिसर्च (आईएएमआर) के हालिया आंकड़े के मुताबिक, ऐसे गरीब कहलाने वाले राज्यों में मानव विकास सूचकांक अब तेजी से राष्ट्रीय औसत के करीब पहुंच रहा है, जहां हाशिये पर पड़े...
More »संकीर्णताओं की विषवेल- रमणिका गुप्ता
जनसत्ता 12 फरवरी, 2014 : हाल में वीरभूम की एक आदिवासी पंचायत ने दूसरे धर्मावलंबी युवक से प्रेम करने के अपराधस्वरूप एक बीस वर्षीय युवती को सामूहिक बलात्कार का दंड दिया। पूरा देश दहल उठा। पंच परमेश्वर के आदेश पर लड़की के आस-पड़ोस के युवा से लेकर पिता की उम्र तक के तेरह लोगों ने उसके साथ सार्वजनिक स्थल पर निर्ममतापूर्वक बलात्कार किया। युवती के परिजन बेबसी के साथ यह...
More »हम इन्हें अपना कब मानेंगे- सुबीर भौमिक
पूर्वोत्तर भारत ऐसा हिस्सा है, जहां भारत कम और दक्षिण-पूर्व एशिया अधिक दिखता है। यहां के ज्यादातर जातीय समूहों के पूर्वज चीन के युन्नान प्रांत और म्यांमार के कुछ हिस्सों से आए हैं। इस हिस्से पर अंग्रेजों के आगमन से पहले किसी भारतीय शासक ने, फिर चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, राज नहीं किया है। अंग्रेज जब भारत से विदा हुए, तब यह क्षेत्र भारत का हिस्सा बना। भारत की राष्ट्र-निर्माण परियोजनाओं...
More »आदिवासी विकास के दो चेहरे- अरुण कुमार त्रिपाठी
जनसत्ता 9 नवंबर, 2013 : देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से चार राज्य ऐसे हैं जिनमें आदिवासियों की खासी आबादी निवास करती है, यह बात हम राहुल बनाम मोदी की बहस में भूल जा रहे हैं। संयोग से ये चुनाव ऐसे अवसर पर हो रहे हैं जब आदिवासियों के विकास और उनके बारे में सरकार की नई नीति को लेकर बहस उठ...
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