छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है और इसकी शुरुआत होती है परिवार में बेटियों को तवज्जो देने से. लेकिन राज्य की राजनीति में यह तस्वीर बिल्कुल उल्टी है. प्रियंका कौशल की रिपोर्ट. राजनीति में परिवारवाद ऐसी बुराई हो चली है जिसके खिलाफ कोई मुहिम नहीं छेड़ी जा सकती. अब यदि ऐसा है तो क्या इसमें कुछ सकारात्मक पक्ष खोजा जा सकता...
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बहती धारा को बलपूर्वक रोका गया : वासवी
स्त्री एवं पुरुष समाज रूपी रथ के दो पहिया हैं. एक पहिया कमजोर हो जाय या टूट जाय तो रथ के आगे बढ़ने की संभावना क्षीण हो जाती है. इसके बाद भी बेटे को लेकर हमारा समाज जितना संजीदा है उतनी बेटियों को लेकर नहीं है. यही वजह है कि बेटियों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण एवं सुरक्षा की समस्या गंभीर बनी हुई है. बेटियों के मामले में कल्याणकारी राज्य के भी जो...
More »रावणा तोंडी रामायण- अनुपम मिश्र
जनसत्ता 1 अगस्त, 2013: ये दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं- प्रकृति का कैलेंडर और हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर, कालनिर्णय या पंचांग। हमारे संवत्सर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं। पर प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख-करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है। इसलिए हिमालय, उत्तराखंड, गंगा, नर्मदा आदि की बातें करते समय हमें प्रकृति के भूगोल का यह कैलेंडर कभी भी भूलना नहीं...
More »पहाड़ की बेटियां लिख रहीं उच्च शिक्षा की इबारत
मेगास्थनिज ने अपने यात्रा विवरण में ईसा से 300 साल पूर्व संताल परगना के पहाड़ों और जंगलों में निवास करने वाली जिस जनजाति की चरचा की थी, वह है पहाड़िया आदिम जनजाति. सदियों शोषण, कुपोषण, अशिक्षा और अभाव में रहा यह समाज तेजी से बदल रहा है. इस बदलाव में इस समाज के बेटियां भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं. अब पहाड़ों और जंगलों में लकड़ी कटने या कंदमूल उखाड़ने तक...
More »अब ना रहें अनचाही हमारी बेटियां- बाबूलाल नागा
हाल ही में 2 मई को चिकित्सा विभाग की पीसीपीएनडीटी इकाई की स्टेट विंग ने जयपुर शहर में दो स्थानों पर स्टिंग आपरेशन कर भ्रूण परीक्षण करते हुए दो डाॅक्टरों को रंगे हाथों पकड़ा। सांगानेर में फागी रोड पर किरण नर्सिंग होम व आदर्शनगर के अनिल हाॅस्पिटल में भ्रूण परीक्षण किया जा रहा था। विभाग की तमाम सख्ती के बावजूद भी भू्रण परीक्षण पर रोक नहीं लग पा रही है। कन्याओं की हत्या में अव्वल होने का...
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