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यूनेस्को साइंस रिपोर्ट 2021: रिसर्च और टेक्नोलॉजी डेवल्पमेंट भारत का भविष्य तय करेगी!

वैज्ञानिक ज्ञान ने भयानक कोरोनावायरस और इसके प्रसार से निपटने में बहुत मदद की है. रिकॉर्ड कम समय के भीतर, वैज्ञानिकों (वायरोलॉजिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट, बायोस्टैटिस्टियन, आदि सहित) और उनके शोध परिणामों ने आम लोगों को यह जानने में मदद की कि SARS-CoV-2 क्या है और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कैसे फैलता है. आम लोगों को अब यह पता चल गया है कि कैसे सरल तकनीक और व्यवहार में...

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गन्ना मूल्य बकाया भुगतान पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पीआईएल, राज्य सरकार को चार सप्ताह में देना होगा जवाब

-रूरल वॉइस, उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के चीनी मिलों पर बकाया गन्ना मूल्य भुगतान में देरी के मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है। याचिका में कोर्ट  को बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के किसानों के गन्ना मूल्य भुगतान  में देरी हो रही है। किसानों को उनके गन्ना मूल्य का समय से भुगतान न करके उन्हें उनके हक से  वंचित किया जा...

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अफ्रीकन स्वाइन फीवर: खतरनाक डीएनए वायरस ने पिग फार्मिंग वालों की तोड़ी कमर

-न्यूजलॉन्ड्री, “कोविड की दूसरी लहर से पहले नवंबर-दिसंबर तक असम के कई जिलों में एएसएफ के मामले जीरो तक पहुंच गए थे, हम इस पर लगभग नियंत्रण पा चुके थे. लेकिन ऐसा लगता है कि राज्यों ने बीमार या संक्रमित जानवरों को छांटकर अलग करने या हटाने (कलिंग) के ऑपरेशन को ठीक तरीके से अंजाम नहीं दिया. यह कमी रह गई जिसके कारण शायद यह दोबारा उभरा. कलिंग एक बड़ी चुनौती...

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मुनाफे की चाह और अपारदर्शी कीमत बनी वैक्सीनेशन की राह में रोड़ा

-न्यूजलॉन्ड्री, यह हमारी दुनिया के लिए करो या मरो जैसा क्षण है. वायरस और उसके नए प्रकारों और टीकाकरण के बीच एक दौड़ सी जारी है. नोवेल कोरोनावायरस जिस गति से म्यूटेट कर रहा है, उसका अर्थ है कि जब तक इस विश्व का हर एक आदमी सुरक्षित नहीं हो जाता तब तक कोई सुरक्षित नहीं होगा. डब्लूएचओ के अनुसार हमें लगभग 11 बिलियन खुराकों की जरूरत है और इन्हें सबसे...

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शेयर बाजार एक आईना है- 40 सालों में कितना बदला भारतीय बिजनेस और इसमें क्या कमी है

-द प्रिंट, चालीस साल पहले सबसे बड़े 30 व्यावसायिक ‘घरानों’ की जो कंपनियां शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध थीं उनका कुल मूल्य 6,200 करोड़ रुपये था. उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) इससे 28 गुना बड़ा (1.75 लाख करोड़ रु. के बराबर) था. ज़्यादातर कंपनियां जूट, चाय, सीमेंट, चीनी, इस्पात के उत्पाद और कपड़े जैसे ‘प्राथमिक’ उत्पादों का उत्पादन करती थीं. उसके बाद से नाटकीय बदलाव हुए हैं. आज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज...

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