-सत्याग्रह, मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ रु के आर्थिक पैकेज से जुड़ी घोषणाओं का ब्योरा निपटाया ही था कि चर्चित अंतरराष्ट्रीय एजेंसी गोल्डमैन सैक्स बुरी खबर लेकर आ गई है. उसका कहना है कि भारत अब तक की सबसे बड़ी मंदी का सामना करने वाला है. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में पांच फीसदी की गिरावट आएगी. गोल्डमैन सैक्स ने अपने...
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कोरोना संकट से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मोदी सरकार के पास क्या हैं रास्ते
-बीबीसी, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रविवार को केंद्र सरकार की ओर से आए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज़ को नाकाफ़ी बताया है. उन्होंने कहा है कि सरकार की ओर से 10 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का दस फीसदी वाला पैकेज़ जारी होना चाहिए क्योंकि वर्तमान पैकेज़ ने कई क्षेत्रों जैसे ग़रीबों, प्रवासियों, किसानों, मजदूरों, कामगारों, छोटे दुकानदारों, और मध्य वर्ग की उचित मदद नहीं की है. वहीं, बीजेपी की...
More »प्रवासी मजदूर : नए दौर के नए अछूत
ग्रामीण क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करते समय मुझे बहुत से ऐसे प्रवासी मजदूर मिले हैं, जो अक्सर कहते हैं, “परेशान होकर हम शहरों में आए हैं। हम गांव में थोपी गई जाति व्यवस्था के कारण अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं।” ऐसा नहीं है कि केवल गांव ही “महान भारतीय जाति व्यवस्था” का पालन करते हैं, लेकिन इस व्यवस्था से सबसे अधिक पीड़ित वे गरीब हैं जो जाति के सबसे निचले...
More »कोरोना संकट में मज़दूरों को ग़ुलामों में बदलता पूंजीवाद
-न्यूजक्लिक, जब 7 मई की रात को यह लेख लिखा जाने लगा कि किस तरह वर्तमान में कोरोना संकट के दौर में पूँजीवाद का घिनौना चेहरा बेनकाब हो रहा है और प्रवासी मज़दूर बंधुआ मज़दूरों में बदल रहें है तो लिखते लिखते घर लौटते हुए प्रवासी मजूरों की मृत्यु के आंकड़े खोजने के चक्कर में यह अधूरा रह गया। फिर सोचा कि लेख अगले दिन पूरा होगा परन्तु जब सुबह हुई...
More »जानिए कैसे लॉकडाउन में प्रोसेसिंग से टमाटर और प्याज को बचा रहे हैं ये गाँववाले!
-द बेटर इंडिया, आए दिन बढ़ रहे COVID-19 के मामलों की वजह से देश में लॉकडाउन की अवधि बढ़ती जा रही है। हालांकि, सरकार की पुरजोर कोशिश है कि इस दौरान देशवासियों को जितनी राहत मिल सकती है मिले। लेकिन फिर भी समाज के कुछ ऐसे वर्ग हैं, जिन्हें परेशानी हो रही है। लॉकडाउन के शुरू होते ही दिहाड़ी मजदूरों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के साथ-साथ किसानों के लिए...
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