नई दिल्ली। यूपीए सरकार ने लगभग पांच साल पूर्व महत्वाकांक्षी योजना के तहत किसानों को राहत देने के मकसद से 52 हजार करोड़ रुपये उनकी कर्ज माफी के लिए आवंटित की थी लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि आंध्र प्रदेश के किसान अपने कर्ज को चुकाने के वास्ते अपनी किडनी व अन्य अंग बेच रहे हैं। सभी 35 राज्यों व संघ शासित प्रदेशों के किसानों को राहत देने...
More »SEARCH RESULT
ऐसे 'गेमचेंजर' साबित हुई थी स्कीम- जयप्रकाश रंजन
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। कांग्रेस पार्टी के नेता किसान कर्ज माफी स्कीम को यूं ही 'गेमचेंजर' नहीं कहते। आंकड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि संप्रग को वर्ष 2009 के आम चुनाव में दोबारा सत्ता में लौटाने में इस स्कीम की अहम भूमिका थी। देश के तीन सबसे ज्यादा संसदीय सीट वाले राज्यों में इस स्कीम को लागू करने को प्राथमिकता दी गई। देश के कुल माफ किए गए...
More »क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...
More »केंद्र सरकार का [अनु] दान खाता
नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। केंद्र सरकार ने अपने खर्च के नए तरीके से घोटालों को सुविधाजनक कर दिया है। विकास के मदों में सरकार का करीब 79 फीसद खर्च अब अनुदानों के जरिये होता है। अनुदानों के इस्तेमाल को जानने का सरकार के पास कोई भरोसेमंद तरीका नहीं है। इसलिए करदाताओं और कर्ज से मिले इस सरकारी पैसे की लूट सहज हो गई है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट में...
More »सत्तर जैसा हाल, इक्यानबे जैसी आफत
नई दिल्ली, [अंशुमान तिवारी]। वित्त मंत्री के धमकाने पर विकास दर का आंकड़ा भले ही बदल जाए, लेकिन हकीकत बदलने वाली नहीं है। भारत के आर्थिक विकास की गति व्यावहारिक रूप से अब साठ-सत्तर के दशक वाली स्थिति में पहुंच गई है। विकास दर में से अगर विदेश व्यापार और विदेशी पूंजी को हटा दिया जाए तो देशी अर्थव्यवस्था पांच फीसद भी नहीं, बल्कि केवल 3 से 3.5 फीसद की दर से...
More »