आर्थिक उदारीकरण में खेती-किसानी को कहीं भी महत्व नहीं दिया जाता। लेकिन भारत में कृषि नीति के प्रति सरकार की लगातार उदासीनता इसलिए घातक है कि सेवा क्षेत्र के विकास के बावजूद कृषि क्षेत्र आज भी अर्थव्यवस्था की धुरी है। यह हताशाजनक ही है कि सरकार बजट-दर-बजट खेती-किसानी को घाटे का सौदा साबित करने पर तुली है। बाहरी दबावों और कॉरपोरेट हितों के लिए कृषि क्षेत्र को तबाह करने का...
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सुन और बोल सकते हैं पौधे भी
मेलबर्न: दक्षिण अफ्रीका के वनस्पतिशास्त्री लिआल वाटसन ने जब अपनी पुस्तक 'सुपरनेचर' में कहा था कि पौधों में भी भावनाएं होती हैं और उसे 'लाई डिटेक्टर' पर दर्ज किया जा सकता है तो सभी ने उनकी इस बात को मजाक समझा था. इस बात को करीब चार दशक बीत गए हैं और अब 'यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया (यूडब्ल्यूए) ' के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि पौधे वास्तव में आवाज सुनकर...
More »मिट्टी हमारा साथ छोड़ रही है -अनिल जोशी
जीवन के मूल संसाधनों को लेकर कही गई पुरानी कहावतें आज के परिप्रेक्ष्य में ज्यादा सही लगती हैं। मिट्टी भी उनमें से एक है। माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदें मोय, इक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूगी तोय। यह दोहा आज सटीक बैठ रहा है। मिट्टी के मोल अब पुराने नहीं रहे। यह भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तरह विलुप्त होती जा रही है। यह संकट बड़ा है, क्योंकि...
More »यहां हरदिन 11 कैंसर रोगी पैदा कर रहा गुटखा
भोपाल/इंदौर/ग्वालियर.प्रदेश के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में रोजाना 54 युवा मुंह न खुलने की बीमारी (ट्रिटमस) की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। उनकी यह हालत लगातार गुटखा खाने से हुई है। इनमें से 20 फीसदी को कैंसर पीड़ित घोषित कर दिया जाता है। बाकी 80 फीसदी में से अधिकतर लोग भी तंबाकू न छोड़ पाने के कारण कैंसर की चपेट में आ जाते हैं। ट्रिटमस पीड़ित लोगों में से दस फीसदी ही...
More »जंगलों में 10 करोड़ की वन संपदा खतरे में
शिमला. प्रदेश के जंगलों में पाए जाने वाली 10 करोड़ की वन संपदा खतरे की जद में है। वन विभाग ने वनौषधियों की कुल पाए जाने वाली 57 प्रजातियों में से 47 को लुप्त प्राय घोषित कर दिया है। ऐसे में इन प्रजातियों को बचाने के लिए इस साल से संरक्षण मुहिम शुरू की जा रही है जिसका मकसद लोगों को रोजगार देना तो होगा ही साथ में औषधियों के...
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