यह बौद्धिक विमर्श और संवाद अपनी जगह है, पर बिचौलियों और भ्रष्टाचार को खत्म करना आज समाज की निगाह में व्यवस्था का सबसे प्रासंगिक और जरूरी मसला नहीं है? हाल ही में एक डच दार्शनिक विचारक व इतिहासकार रटजर बर्जमैन की महत्वपूर्ण किताब आयी है, ‘यूटोपिया फॉर रिअलिस्ट्स' (ब्लूम्सबेरी). यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्टसेलर मानी गयी है. इस पुस्तक का मर्म है कि हम एक अप्रत्याशित उथल-पुथल के दौर में...
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औरतों की आजादी का कारवां-- शशिशेखर
तीन तलाक को जो लोग महज मुस्लिम हक-हुकूक का मुद्दा बनाने पर आमादा हैं, उनसे अनुरोध है कि एक बार वे अपनी हिन्दुस्तानी परंपरा में झांक देखें, उनकी सारी शंकाओं का समाधान मिल जाएगा। जन-जागरण और बदलाव हमारे देश में रवायत रही है। परिवर्तन की यह अनवरत कामना भले ही कभी-कदा अदालत अथवा हुकूमत के जरिए आकार लेती दिखाई पडे़, पर मूलत: भारतीय समाज आत्मालोचन के जरिए आगे बढ़ने का अभ्यस्त...
More »आधार पर रोक की उम्मीद -- आकार पटेल
पंद्रह वर्ष पहले जिस समाचार पत्र का मैं संपादन करता था, उसमें सलमान खान और ऐश्वर्या राय की एक बातचीत छपी थी. बातचीत में प्रीटी जिंटा का भी जिक्र था, जिन पर सलमान खान ने अश्लील टिप्पणी की थी. इससे नाराज होकर जिंटा ने मेरे खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था. कुछ वर्षों तक मुकदमा चला और फिर उन्होंने इसे वापस ले लिया था. बहरहाल, इस मामले में...
More »तीन तलाक पर कमजोर फैसला -- योगेन्द्र यादव
तीन तीन तलाक की प्रथा मानवीयता, संविधान और इस्लाम तीनों के विरुद्ध है. देर-सवेर तीन तलाक को खारिज होना ही था, सो हो गया. लेकिन, मुझे इस फैसले से तीन बड़ी उम्मीदें थीं. एक, इससे तीन तलाक ही नहीं, देश में तमाम महिला विरोधी धार्मिक-सामाजिक कुरीतियों को अमान्य करने का रास्ता खुलेगा. दो, इस बहाने मुस्लिम समाज में सुधार होगा और मुस्लिम अपने कठमुल्ला नेतृत्व से मुक्त होंग. तीन, कानूनी...
More »तीन तलाक पर अच्छा फैसला-- भूपेन्द्र यादव
तीन तलाक पर आये फैसले को किसी संस्था या धार्मिक परंपरा विशेष के खिलाफ न मानकर एक प्रगतिशील कदम के रूप में देखना चाहिए, जो समाज के साधारण एवं वंचित वर्ग के प्रति निष्पक्ष न्याय व्यवस्था का फैसला है. इस विषय पर मीडिया के सारे साधनों में बहस और चर्चा हुई है, जिसमें धार्मिक संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ साधारण जन और पीड़ित पक्षों ने भी बहस की है. यह...
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