पिछले चालीस दिनों में नोटबंदी ने देश की तरह मुझे भी तरह-तरह के अनुभव दिए हैं। देश दो खेमों मे बंटा दिख रहा है। एक तरफ देशभक्त हैं, जिनकी बांछें खिली हुई हैं और जो बता रहे हैं कि बस देखते रहिए, देश से काला धन, जाली नोट और आतंकवाद खत्म होने ही वाले हैं। यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ ही उनकी मुस्कान धीरे-धीरे कमजोर पड़ती...
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आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्ााल पांडे
दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...
More »चुनावी चंदा: राजनीतिक दलों की आय बढ़ी लेकिन टैक्स और RTI से बाहर
500-1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों को पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने कर इनकम टैक्स नहीं लगेगा। आईटी ऐक्ट, 1961 के सेक्शन 13A राजनीतिक दलों को टैक्स से छूट प्राप्त है। इसके अलावा राजनीतिक दल सूचना का अधिकार (आरटीआई) के दायरे में भी नहीं आते हैं। हालांकि, पिछले दस सालों में राजनीतिक दलों की आय में करोड़ों रुपये का इजाफा है। इसी साल...
More »राजनीतिक सुधार से डर किसको?-- उर्मिलेश
जब कभी संसद में गतिरोध, उलझाव व टकराव देखता हूं, तो बहुत हैरान या चकित नहीं होता. अपनी लोकतांत्रिक चुनौतियों की लगातार अनदेखी करते रहने का यह सब नतीजा है. बीते कई दशकों से हमारे नीति-निर्धारक और पार्टी-व्यवस्था के संचालक अपनी अंदरूनी राजनीतिक चुनौतियों को संबोधित करने से लगातार बचते रहे हैं. भारत ने अाजादी के बाद अपनी लोकतांत्रिक यात्रा की शुरुआत बहुत धीर-गंभीर ढंग से की थी. आजादी की...
More »साइबर खतरे की सबसे बड़ी दस्तक-- हरजिंदर
विजय माल्या से लेकर राहुल गांधी, बरखा दत्त और रवीश कुमार के ट्विटर व अन्य खातों का हैक हो जाना फिलहाल भले ही चर्चा में हो, लेकिन यह एक ऐसा मसला है, जिसे जल्द ही हम भुला देंगे। हालांकि इस मामले में भी बहुत कुछ है, जो समझ में आने वाला नहीं है। यह सवाल तो खैर अपनी जगह है ही कि एक खास राजनीतिक रुझान के लोगों को लीजियान...
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