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वे दीवारें, जिन्हें लांघना है मुश्किल - सईद नकवी

पहली कहानी एक पीएचडी छात्र रोहित वेमुला की है, जो कार्ल सागान जैसा अंतरिक्ष विज्ञानी बनना चाहता था, लेकिन अंतत: वह आत्महत्या कर लेता है। दूसरी कहानी सीवेज की सफाई करने वाले एक व्यक्ति की है, जो सीवेज में जिंदा कॉकरोच की तलाश करता है। उन्हें देखकर उसे सुरक्षा का अहसास होता है कि कम से कम जहरीली गैसों से उसकी मौत नहीं होगी। एक दिन उसका आकलन गलत साबित...

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'आत्महत्या के विरुद्ध' 2016-- रविभूषण

आत्महत्या का संबंध असहिष्णुता, भय, आतंक और असुरक्षा आदि से उत्पन्न उस अकेलेपन से है, जिसका एक सामाजिक संदर्भ है. आत्महत्या अपने व्यापक अर्थ में हत्या है. आत्महत्या को मनोविज्ञान से जोड़ कर अधिक देखा जाता रहा है, जबकि इसका एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है. रघुवीर सहाय ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता 'आत्महत्या के विरुद्ध' (मई 1967 की 'कल्पना' में प्रकाशित) में 'जनता की छाती' पर चढ़े 'मंत्री मुसद्दीलाल' का एक चित्र...

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फिर भारत की खोज-- कुमार प्रशांत

हम खोजते उसे हैं, जिसकी जरूरत तो लगती है, पर वह हमारे पास होती नहीं है; या जो कभी मिली थी और अब खो गई है। भारत के साथ दोनों स्थितियां हैं। दार्शनिक जद्दू कृष्णमूर्ति से कभी किसी ने भारत की खोज करने की ऐसी ही बात की थी, तो उन्होंने पलट कर पूछा था : क्या तुम्हें कहीं कोई भारत मिला? क्या तुमने कहीं भारत की विशालता जितना बड़ा...

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जो मनुष्यता में यकीन रखते हैं-- निवेदिता शकील

रात सर्द हो आयी है. आसमान में धंुधले तारे चमक रहे हैं. रात का लंबा रुपहला दीर्घोच्छवास सुनायी दे रहा है. कमरे के बीचो-बीच रोशनी के छोटे वृत्त से बाहर मैं रोहित वेमुला का खत पढ़ रही हूं. मेरा चेहरा आंसुओं से भीग रहा है. मैं देख रही हूं, सुलगती हुई लकड़ियों से लपलपाती लपटों से उठता हुआ धुआं. एक ही देश में रहते हुए हम सब एक-दूसरे से कितने अनजाने...

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वक्त के पन्नों पर जो दर्ज कर गये अपनी अमिट छाप

नियम यह है विधाता का / सभी आकर चले जाते / मगर कुछ लोग ऐसे हैं / जो जाकर भी नहीं जाते। न सब धनवान होते हैं / न सब भगवान होते हैं/ दयालु, लोकप्रिय, सतपाल / भले इनसान होते हैं।। ... और ऐसा कोई इनसान जब वक्त के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ कर हमारे बीच से विदा होता है, तो यह हम सबका साझा फर्ज बनता...

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