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शासकीय नैतिकता का आख़िरी झीना पर्दा भी जाता रहा

-सत्यहिंदी,  जोसेफ स्टोरी की 200 साल पहले कही गयी बात सही साबित हो रही है। पार्टी में आ जाएँ तो सात खून माफ़ लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ जाएँगे तो ‘देशद्रोह’। संदेश साफ़ है ‘पाला बदलो या सीबीआई को झेलो और जेल भोगो’। क्या इस सन्देश का तार्किक विस्तार यह नहीं हो सकता कि ‘हमारे ख़िलाफ़ होने का मतलब सीबीआई/ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या इनकम टैक्स की चाबुक झेलने को तैयार रहो।  संविधान, क़ानून...

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तिर्यक आसन: योगास्कर गोज़ टु मिस्टर प्राइम मिनिस्टर!

-जनपथ, स्मार्ट सिटी के शोर के बीच स्मार्ट विलेज बनाने की भी पैरवी हो रही है। गाँवों को इस स्मार्ट शब्द की जद से बख्श देना चाहिए। भाषायी कौशल के मामले में गाँव, शहरों से अधिक स्मार्ट हो चुके हैं। शहर अभी हिंग्लिश बोल रहा है। वहीं गाँव भोजपुरी, हिंदी और अंग्रेजी को मिलाकर नई भाषा ईजाद कर चुका है। गाँव से शहर के स्मार्ट कान्वेंट स्कूल में पढ़ने जाने वाला बच्चा...

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कोरोना टेस्ट अब ख़ुद कर सकेंगे, ICMR ने निर्देशों के साथ किट को दी मंज़ूरी

-बीबीसी,  भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने कोविड-19 के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा है कि जिन लोगों में कोरोना संक्रमण के लक्षण हैं और जो जाँच में पॉज़िटिव पाये गए किसी मरीज़ के संपर्क में रह चुके हैं, उन्हें कोविड-19 की पुष्टि के लिए आरएटी की मदद से घर पर ही जाँच करनी चाहिए. आईसीएमआर के ताज़ा परामर्श के मुताबिक़, उन सभी लोगों...

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बिना पैसे और दस्तावेज़ों के कोविड-19 की जंग लड़ रहे हैं रोहिंग्या शरणार्थी

-न्यूजक्लिक,  दिल्ली के कई शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या मुस्लिमों के पास न तो इलाज के लिए पैसा है और न ही कोविड-19 रोधी टीका लगवाने के लिए दस्तावेज हैं जिससे महामारी के इस दौर में जीवित रहने के लिए वे खुद ही संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने उन लोगों के लिए जांच और टीकाकरण के दिशा निर्देशों को आसान बनाया है जिनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है लेकिन कई...

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आवरण कथा/ कोविड कहर : वो कौन गुनहगार है...

-आउटलुक, “महामारी की भयंकर दूसरी लहर में बेबस लोग अस्पताल, ऑक्सीजन, दवाइयों के अभाव में बेमौत मरने को मजबूर, सारा ढांचा चरमराया, सत्ता के अपने खेल में मस्त लापरवाह सरकार की खुली पोल” हर तरफ मौत, मायूसी, बेबसी जैसे पसरी हुई है। जो चंद दिनों पहले कोरोना पर विजय का दंभ भर रहे थे, वे किन्हीं छद्म के आवरणों में छुप गए हैं। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। ऐसे मंजर...

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