पिछले 70 सालों में भारत में शायद ही कोई ऐसा नेतृत्व रहा हो, जिसे विदेशों में इतनी सकारात्मक उत्सुकता से देखा जा रहा हो, जितना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को। इसमें दो-तरफा वाणिज्य भी है और उभरते भारत की तस्दीक भी। जुकरबर्ग, पिचाई, नडेला बेमतलब ही फोटो खिंचवाने नहीं आते। मोदी विरोधियों को यह समझना पड़ेगा कि जब से भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ समेकित हुई है, कोई...
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उच्च शिक्षा की होड़ से पहले- चंदन श्रीवास्तव
उच्च शिक्षा-संस्थानों में कौन कितना बेहतर है, यह निर्धारित करने के लिए सरकार ने एक देसी फ्रेमवर्क बनाया है. संस्थानों को उनकी श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर से नीचे सजाने की तरकीब आकर्षक लग सकती है और जरूरी भी. जो अभिभावक अपने होनहारों की उच्च शिक्षा पर बरसों की जमा रकम खर्च करने का फैसला लेते हैं, या फिर जो छात्र अपनी पढ़ाई के लिए सूद की ऊंची दरों पर...
More »विकास की नीतियां बदलने का वक्त - यशवंत सिन्हा
भारत में घोषित आर्थिक सुधारों का इतिहास 24 साल पुराना है, लेकिन इन 24 वर्षों में भी सुधारों को लेकर जो विवाद हैं, वे अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं। आज भी भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून, जीएसटी, डायरेक्ट टैक्स (जैसे गार अथवा पिछली तिथि से लागू होने वाले कर) विदेशी पूंजी निवेश इत्यादि अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर आज भी कोई सहमति नहीं बन पाई है। जब डॉ. मनमोहन...
More »जीएसटी की कसौटी पर- पार्थ उपाध्याय
संसद का सत्र लोक-अपेक्षाओं को पूर्ण करने का एक मंच होता है। संवैधानिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही सरकार संविधान में संशोधन, परिवर्धन और परिवर्तन करती है। विपक्ष भी जन-आकांक्षाओं पर सरकार को काम करने के लिए बाध्य करने का एक माध्यम है। पर कांग्रेस की हठधर्मिता के कारण विपक्ष की यह भूमिका फिलहाल कमजोर हुई दिखती है। लगभग सत्रह हजार नागरिकों ने अपने हस्ताक्षरों के साथ अपील जारी की...
More »दुनिया के बाजार में बदलावों का दौर - डॉ. भरत झुनझुनवाला
विश्व अर्थव्यवस्था के मंदी में प्रवेश करने के संकेत मिल रहे हैं। चीन ने अपनी मुद्रा युआन का हाल में अवमूल्यन किया है चूंकि उस देश द्वारा बनाए गए माल की विश्व बाजार में बिक्री नहीं हो रही थी। युआन का मूल्य कम होने से अमेरिकी खरीदार के लिए चीन का माल सस्ता पड़ेगा। चीन को आशा है कि उसका माल सस्ता होने से बिक्री बढ़ेगी और वह मंदी से...
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