भारतीय पुलिस सेवा में तीन दशकों से अधिक के अपने सफर के दौरान मुझे जिस बात से सबसे अधिक आश्चर्य होता था, वह थी भारतीय जनता के मन मे पुलिस सुधारों को लेकर पसरी हुई उदासीनता। यह देखकर मन उदास हो जाता था कि जिस संस्था से औसत भारतीय नागरिक का सबसे अधिक वास्ता पड़ता है, उसे बेहतर बनाने के लिए किसी तरह का कोई आंदोलन नहीं होता। अधिक से...
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अभिजीत मुखोपाध्याय-- अभिजीत मुखोपाध्याय
विमुद्रीकरण की घोषणा के ठीक एक साल बाद, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि यह कदम विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक हथकंडा था. जिसका मकसद प्रधानमंत्री को काला धन से लड़नेवाले एक ऐसे जेहादी अवतार के तौर पर पेश करना था, जो भ्रष्ट अमीरों की जान के पीछे पड़ा है. 8 नवंबर, 2016 को स्पष्ट उनके अपने शब्दों में- ‘इसलिए, भ्रष्टाचार, काला धन, नकली नोटों और आतंकवाद के विरुद्ध इस लड़ाई...
More »प्रदूषण के बड़े कारक-- देवेन्द्र जोशी
प्रदूषण आज किसी एक देश की नहीं बल्कि विश्वव्यापी समस्या है। दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में तेरह भारत में हैं। भारत में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण राजधानी दिल्ली में है। दिल्ली में सांस के रोगियों और इससे मरने के मामले सर्वाधिक हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण के कारणों में एक दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर रोक भी लगाई थी। इसका असर पड़ा तो लेकिन...
More »भूख नहीं जानती सब्र-- संजीव पांडेय
दुष्यंत कुमार का शेर है : भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ। आजकल संसद में है जेरे-बहस ये मुद्दआ। शायर इसमें हुक्मरानों की खिल्ली उड़ा रहा है क्योंकि वह जानता है कि भूख सब्र नहीं जानती। इसके बावजूद हमारी व्यवस्था गरीबों का इम्तहान लेती रहती है। महज कुछ दिनों के अंतर पर ही झारखंड में भूख से तीन मौतें हुर्इं; उस राज्य में जो खनिज संसाधनों...
More »भुखमरी: क्या 2014 के ग्लोबल हंगर रिपोर्ट से तुलना जायज है ?
साल 2014 में वैश्विक भुखमरी सूचकांक(ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के पैमाने पर भारत का स्थान 55 वां था जबकि इस साल भारत 100 वें स्थान पर है. 2014 में भारत का जीएचआई अंकमान 17.8 था और इस साल का अंकमान 31.4 है. तो क्या महज तीन सालों के भीतर देश में भुखमरी की हालत इतनी संगीन हो गई है कि भारत का दर्जा 100 से ज्यादा देशों के बीच 45 पादान नीचे खिसक आया है? सवाल का...
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