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दिल्ली दंगा: क्या दिल्ली पुलिस जांच को 'विशेष दिशा’ में ले जाना चाहती है?

-आउटलुक, चीन के विपरीत भारत की सफल सरकारें बहुत कुछ पाने में सफल रही हैं। 1984 के दिल्ली दंगों और गुजरात में 2002 की सामूहिक जनसंहार से लेकर समय-समय पर सांप्रदायिक हिंसा और जम्मू-कश्मीर में दमन जैसी घटनाएं हुई। फिर भी भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा कटघरे में खड़ा होने से बच गया क्योंकि इसे लोकतंत्र के रूप में देखा जाता है। इन सभी मामलों में यह माना गया कि कानून का शासन...

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क्या कमज़ोर हो रहा है लोकतंत्र और सरकार के सामने झुक रहा है भारतीय मीडिया?

-बीबीसी, बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में दिए एक वर्चुअल भाषण में कहा था कि 'भारत ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई को एक जनआंदोलन बना दिया है'. मोदी के इस बयान को भारतीय मीडिया में ख़ूब कवरेज मिली, लेकिन हैरत की बात ये है कि किसी ने भी प्रधानमंत्री के दावों को चुनौती नहीं दी. ये अलग बात है कि भारत में संक्रमण...

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‘पोस्ट कोरोना वर्ल्ड’ की मार्च-अप्रैल कालीन परिकल्पनाओं का जुलाई आते-आते शीराज़ा बिखरने लगा है

-लोकवाणी, बीते मार्च महीने में, जब कोरोना संकट दुनिया के लगभग तमाम देशों को अपनी चपेट में ले चुका था, एक बहस चलनी शुरू हुई थी कि ‘पोस्ट कोविड-19 वर्ल्ड’ का स्वरूप कैसा होगा। हालांकि, अब जब…जुलाई आधा बीतते दुनिया के कई देशों में संकट इतना गहरा चुका है कि भविष्य की रूपरेखा धुंधली लगने लगी है, वर्त्तमान से जूझने में ही इतनी ऊर्जा का व्यय हो रहा है कि आम लोग...

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कश्मीर में पत्रकारों के लिए प्रशासन ने बनाई नई नीति, खबर छापने से पहले बताना होगा, सड़कों पर उतरे पत्रकार

-सबरंग, जम्मू-कश्मीर में प्रशासन की नई मीडिया पॉलिसी के खिलाफ 'जे एंड के मीडिया गिल्ड' के बैनर तले पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किया और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। पत्रकारों ने यहां प्रेस एनक्लेव में इकट्ठा होकर 'मीडिया को चुप कराना बंद करो, हम लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं' आदि नारों के साथ बैनर निकालकर प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नई मीडिया पॉलिसी जम्मू और कश्मीर...

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बाहुबलियों- नेताओं और पुलिस के सांठ-गांठ को लेकर ऐसा क्या है एनएन वोहरा कमिटी की रिपोर्ट में जिसे सार्वजनिक नहीं कर रही है सरकार

-द प्रिंट, कानपुर में पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या की घटना के बाद एक बार फिर संगठित अपराधियों, माफिया, नेताओं और पुलिस तथा प्रशासन की सांठगांठ की ओर इशारा कर रही है. यह कितना आश्चर्यजनक है कि एक अपराधी की तलाश में पुलिस दबिश करती है और इसकी सूचना पहले ही लीक हो जाती है, नतीजा संगठित तरीके से पुलिस पर गोलीबारी के रूप में होता है. अब समय आ गया है कि...

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