बच्चों का पोषण, स्वास्थ्य और उनका भविष्य मां के पेट में निर्धारित होता है. अगर मां कुपोषित और बीमार होगी, तो बच्चे भी पीड़ित होंगे. गर्भावस्था के दौरान पोषण, दवा और आराम सब समय पर मिले, यह न केवल महिलाओं के हित की बात है, बल्कि बच्चों के अधिकार और देश के विकास की बात भी है. वास्तविकता यह है कि गर्भावस्था और प्रसव भारत की गरीब महिलाओं के लिए...
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रिपोर्ट को नहीं अपने धुएं को देखें-- अनिल प्रकाश जोशी
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट उस समय आई है, जब हमारे सिर पर कई खतरे मंडरा रहे हैं। दिल्ली का बढ़ता वायु प्रदूषण फिर एक बार हमारी नीतियों पर सवाल खड़े कर रहा है। हरियाणा, पंजाब की पराली का धुआं फिर पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का गला घोंटने को तैयार है। पराली को जलाने की बजाय अन्य उपयोगों में लाने की कवायद असफल होती...
More »किसान आंदोलन का नया स्वरूप- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
किसानों के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि खेती किसानी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह तो तय है कि जैसे-जैसे उत्पादन में उद्योग धंधे और पूंजी का महत्व बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे किसानों की हालत बिगड़ती जायेगी. दुनियाभर के पूंजीवादी देशों को देखकर लगता है कि बिना सरकारी सहायता के किसानों की हालत अच्छी नहीं हो सकती है. भारत में पूंजीवाद के बढ़ते कदम...
More »बेमानी होंगी अधिक उम्मीदें-- टीएम थॉमस आईजैक
बीते 23 सितंबर को प्रधानमंत्री द्वारा आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) की शुरुआत की गयी, जिसे कई लोगों ने विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक स्वास्थ्य कार्यक्रम बताया है. पिछली बीमा योजनाओं से प्राप्त अनुभवों एवं इस योजना को लेकर उपजे भ्रमों की वजह से अभी इससे ज्यादा उम्मीदें करना गैरजरूरी है. यह योजना इस सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में लागू की गयी है, जब...
More »न्यूनतम मजदूरी का सवाल-- मनींद्र नाथ ठाकुर
बढ़ती महंगाई को देखते हुए देश में क्या न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाया जाना चाहिए? यह सवाल इसलिए भी उठ खड़ा हुआ है, क्योंकि दिल्ली और ओड़िशा के सरकारों ने इसमें महत्वपूर्ण पहल करने का निर्णय लिया है? पूंजीवादी विकास के तीन आधार हैं और उनमें एक संतुलन बनाये रखने का काम राज्य के जिम्मे होता है. पहला आधार है पूंजी, जिसके मालिकों को इस बात के लिए प्रेरित करना...
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