देश में सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (एसइसीसी) के अलग-अलग पहलुओं पर बहस चल रही है। कुछ जानकार इस तथ्य की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस जनगणना ने भारतीय अर्थव्यवस्था के कई स्याह हिस्सों पर रोशनी डाली है। विकास के कोलाहल में स्याह हिस्सों को कोई भी सरकार नहीं देखना चाहती। चाहे वह कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार रही हो, जिसने इस जनगणना के आंकड़ों को जानबूझ कर...
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रोजगार सृजन की नीति- डा भरत झुनझुनवाला
वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, वर्ष 2009 से 2012 में प्रति वर्ष संगठित क्षेत्र में मात्र 5 लाख रोजगार का सृजन हुआ है. हमारे श्रम बाजार में प्रति वर्ष एक करोड़ युवा प्रवेश कर रहे हैं, पुराना बैकलॉग कम से कम 6 करोड़ का है. क्या कारण है कि हम केवल 5 लाख रोजगार प्रति वर्ष सृजित कर रहे हैं? कारण है कि कंपनियों द्वारा मशीनों का...
More »जनगणना से मिलते संकेत- अरविन्द मोहन
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जिस तरह जनगणना के जातिवार आंकड़ों के बारे में तत्काल सफाई दी और उसे लगभग ठंडे बस्ते में डाल दिया, उसके पीछे बड़ा कारण बिहार विधानसभा का चुनाव था। अब बिहार में जातिवार जनगणना के आंकड़ों की मांग बड़ा चुनावी मुद्दा बन गई है। कई लोग यह भी कहने लगे हैं कि जरूरी नहीं कि जातिवार आंकड़ों की मांग लालू-नीतीश की जोड़ी को फायदा पहुंचाए और...
More »श्रम और दक्षता का संतुलन-- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
यह नई खोजों का समय है। भविष्य में वही समाज या देश आगे बढ़ेगा, जो नई वैज्ञानिक और सामाजिक खोजों में आगे रहेगा। दुनिया में इस समय तीन देश प्रतिस्पर्धा में हैं: चीन, भारत और अमेरिका। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हाल में ‘ब्रेन प्रोजेक्ट' की शुरुआत करते हुए जिक्र किया कि इंटरनेट के बाद अगली क्रांति मनुष्य के दिमाग की तकनीकी को समझने की होगी और अमेरिका को ये...
More »खेती का खेल निराला मेरे भइया- राजेन्द्र तिवारी
देश के करीब 75 फीसदी परिवार कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं. देश की लगभग 70 प्रतिशत गरीब आबादी (विश्व बैंक के मुताबिक 77 करोड़ लोग) गांव में बसती है. लेकिन देश के जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगातार गिरता जा रहा है. 50 के दशक में कृषि की हिस्सेदारी हमारी जीडीपी में 50 फीसदी से ज्यादा थी, 90 के दशक में यह 20 से 30 फीसदी रह गया और 2013-14...
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