बिना शोरगुल मचाए उसने काम किया। न काम का श्रेय लिया; बस अपने हिस्से का काम किया। और एक दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका जाना भी खामोशी की तहों में छिप गया। लेकिन, पहले भी उनका काम बोल रहा था और आज भी उनका काम बोल रहा है। पी.वी. सतीश; पेरियापटना वेंकटसुब्बैया सतीश। आपकी पैदाइश सन् 1945 के जून महीने की है। जन्म, कर्नाटक के मैसूर जिले के खाते–पीते...
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ग्राउंड रिपोर्ट: गेहूं के खेतों से खेल रही है आग, पेट का सवाल और सदमे में किसान
जनचौक, 12 अप्रैल उत्तर प्रदेश के गेहूं किसान समय से पहले चढ़े तापमान से प्रभावित फसल और तूफान-बारिश के नुकसान का जख्म अभी भरा भी नहीं था। हर आपदा-विपदा सहकर खेतों में बची फसल की कटाई-मढ़ाई कर घर लाने की जुगत में थे। इसी बीच अब सूबे के जनपदों में हो रही गेहूं के खेतों में अगलगी की घटनाओं से किसान सहम गए हैं। अगलगी से पीड़ित किसानों के अरमान चंद मिनटों...
More »कौन सुनेगा महिला श्रमिकों का दर्द?
डाउन टू अर्थ, 06 अप्रैल पति नागालैंड रहते हैं। एक बेटे को पढ़ाने के लिए शहर में रखी हूं। थोड़ी सी जमीन है। कुछ किसानों की जमीन एक तय राशि पर ली हूं। दिनभर श्रम करने के बाद किसी तरह रोजी-रोटी चलती है. साल में एक बार किसान को पैसे चुकाने पड़ते हैं।" बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर दियारा इलाके की गिन्नू देवी की यह कहानी...
More »कीटनाशक बनाने वाली कंपनी पर किसानों ने लगाया फसलें खराब करने का आरोप, कार्रवाई की मांग
मोंगाबे हिंदी, 06 अप्रैल सलीम पटेल, 43, गुजरात के भरूच जिले के वागरा तालुका के त्रालसा गांव में कपास की खेती करते हैं। वह पिछले 16 साल से ज्यादा समय से कपास उगा रहे हैं। उनके पास 22 एकड़ जमीन है जिसमें से आधे से ज्यादा पर कपास की ही खेती होती है। नर्मदा नदी की तलहटी के निचले मैदानों में मौजूद इन खेतों की सिंचाई नहरों से होती है और...
More »बेरोजगारी दूर करने का दमखम है कृषि में
दैनिक ट्रिब्यून, 03 अप्रैल कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह देश ने प्रवासी मजदूरों का घर-वापसी पलायन देखा, उसके बाद आई आवधिक श्रमिक बल सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि खेत मजदूरों की संख्या में 3 फीसदी का इजाफा हुआ है, यह गिनती वर्ष 2018-19 में 42.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 45.5 फीसदी हो गई। जिस कृषि क्षेत्र को इन तमाम सालों में जान-बूझकर दीन-हीन बनाकर रखा गया है, वह...
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