विश्व इतिहास में समानता और न्याय के मुद््दे सबसे महत्त्वपूर्ण रहे हैं। ये आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, पर इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते कुछ ऐसे मुद््दे भी इसमें जुड़ गए हैं जो धरती पर जीवन के अस्तित्व को लेकर हैं। इनमें मुख्य हैं जलवायु बदलाव जैसे पर्यावरण के गंभीर संकट तथा महाविनाशक हथियारों से जुड़े खतरे। अब एक बड़ी चुनौती यह है कि जीवन के अस्तित्व को संकट में डालने वाले...
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कौन सुनता है उनकी बात --- बद्री नारायण
भारतीय लोकतंत्र को एक सक्षम लोकतंत्र माना जाता है, लेकिन यह अंतर्विरोधों से भी भरा हुआ है। इसकी एक विडंबना यह है कि भारतीय जनता का एक वर्ग जहां अति मुखर है, वहीं उसका एक बड़ा वर्ग ‘मूक व चुप समुदाय' के रूप में समाज में रहता है। भारतीय समाज का एक भाग जहां सोशल मीडिया, मीडिया के अन्य रूपों, सभा-सोसायटी में बोल रहा होता है, वहीं एक बड़ा भाग...
More »अभी बाकी है समानता की लड़ाई - तसलीमा नसरीन
सऊदी अरब ने महिलाओं के गाड़ी चलाने पर जारी प्रतिबंध को कुछ दिन पूर्व हटा लिया है। महिलाएं अब अगले साल जून से गाड़ियां चला सकेंगी। यह एक बड़ी खुशखबरी है। 1990 में पहली बार महिलाएं गाड़ी चलाने का अधिकारी मांगने को सड़क पर उतरी थीं। 47 महिलाओं ने रियाद शहर में गाड़ी ड्राइव की थी। उन सबको गिरफ्तार किया गया था। यही नहीं, उनमें से कुछ की तो नौकरी...
More »चलो, चलें गांव की ओर?-- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
सत्तर के आखिरी दशक में मेरी मुलाकात अस्सी साल के बुजुर्ग शिक्षाविद श्रीमान जीवन नाथ दर से हुई थी. मैं जिस विद्यालय की आठवीं-नवीं कक्षा में पढ़ता था, ये कभी वहीं प्राचार्य हुआ करते थे. कहते हैं कि जब बिहार सरकार ने भारत सरकार की सलाह पर इस प्रयोगात्मक विद्यालय खोलने का निर्णय लिया, तो पंडित नेहरू ने उनसे यहां आने का आग्रह किया था. शांतिनिकेतन के तर्ज पर बिना...
More »हार कर भी जीता आंदोलन -- योगेन्द्र यादव
अब नर्मदा बचाओ आंदोलन अपनी लड़ाई के अंतिम दौर में प्रवेश कर चुका है. उधर सरदार सरोवर डैम की अपनी प्रस्तावित ऊंचाई तक पहुंच जाने से कुछ लोगों के लिए एक स्वप्न सरीखी जबकि दूसरों के लिए एक भयावह परियोजना वास्तविकता में बदल गयी है. इस डैम के जल निकास द्वार बंद किये जा चुके हैं, नतीजतन इसके जलाशय में बढ़ता जलस्तर अब उन लोगों के घर-द्वार लील लेने को...
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