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'इस देश में महिला के रूप में जन्म लेना गुनाह से कम नहीं'

भोपाल(मध्‍यप्रदेश)। 'मैं केवल यही दुआ कर सकती हूं कि इस देश में कोई महिला के रूप में जन्म न ले। देश में महिला के रूप में जन्म लेना किसी गुनाह से कम नहीं है।' यह दर्द मध्यप्रदेश कैडर की ट्रेनी आईएएस का है। यौन उत्पीड़न की शिकार हुई इस अफसर ने कहा, यहां तो हर शाख पर उल्लू बैठा है। केस दर्ज करवाने और बयान रिकॉर्ड करवाने के दौरान उन्होंने...

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व्यापम की राह पर छत्तीसगढ़ का धान घोटाला, खुलासा करने वाले की मौत

छत्तीसगढ़ का चर्चित पैडी घोटाला मध्यप्रदेश के कुख्यात व्यापमं घोटाले की तर्ज पर चल पड़ा है। करोडों के इस घोटाले का खुलासा करने वाले प्रमुख व्हिस्लिब्लोअर सुरेन्द्र शाक्या जबलपुर स्थित अपने घर पर संदिग्‍ध रूप से मृत हालत में पड़े मिले। पुलिस ने प्राथमिक जांच में इसे आत्महत्या करार दिया है। हालांकि उनके परिजनों ने आत्महत्या की बात को नकारते हुए पुलिस पर चालबाजी का आरोप लगाया है। सुरेन्द्र के बड़े...

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सफाई कर्मचारियों की भी सुनिए- सुभाषिनी अली सहगल

वर्ष 1958 से 31 जुलाई हमारे देश में 'अखिल भारतीय सफाई मजदूर दिवस' के रूप में मनाया जाता है। समाज के दूसरे हिस्से इन कार्यक्रमों से बहुत दूर और पूरी तरह अनभिज्ञ रहते हैं। 22 जुलाई, 1957 को दिल्ली के सफाई कर्मचारियों ने अपना मांग पत्र दिल्ली की नगरमहापालिका के सामने पेश किया था। उसके साथ एक हफ्ते बाद शुरू होने वाली हड़ताल का नोटिस भी संलग्न था। चूंकि मामला...

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फंदे में फांसी- विशेष प्रस्तुति(प्रभात खबर)

फांसी की सजा को खत्म करने पर एक बहस दुनियाभर में सालों से चल रही है. भारत में भी मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी दिये जाने से पहले 291 प्रतिष्ठित लोगों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख कर फांसी रोकने की मांग की थी.  भारत उन देशों में शामिल है, जहां फांसी की सजा पर अमल नहीं के बराबर हो रहा है. हालांकि जघन्यतम अपराध के दोषियों में...

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क्यों झूठे हैं मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए दिए जा रहे चारों तर्क-- कल्पेश याग्निक

‘जो कुछ भी गोपनीय रखा जाता है, पूरी तरह बताया और समझाया नहीं जाता, अनेक प्रश्न अनुत्तरित रखकर किया जाता है; वह बाद में सड़ने लगता है। चाहे इस तरह किया गया न्याय ही क्यों न हो। - पुरानी कहावत मृत्युदंड दिया जाना चाहिए कि नहीं? प्रभावी और मेधावी लब्धप्रतिष्ठितों की स्पष्ट राय है - नहीं? उनके चार तर्क हैं : 1. क्योंकि यह तो ‘आंख के बदले अांख' का विकृत कानून हो...

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