-आउटलुक, आजादी के बाद पिछले 70 साल से किसान घाटे का सौदा कर रहे हैं। एक तरफ उसकी जोत कम हो रही है, दूसरी तरफ उत्पादन की लागत बढ़ रही है। लेकिन उन्हें उपज बेचने पर लागत भी नसीब नहीं होती है। हर सरकार किसानों की पीड़ा का जिक्र चुनाव प्रचार में तो करती है, लेकिन जीतने के बाद पांच साल के लिए किसानों को भूल जाती हैं। जहां कोरोना से...
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प्रवासी श्रमिकों ने श्रमदान से पुनर्जीवित की घरार नदी
-डाउन टू अर्थ, बुंदेलखंड की कहावत है “पानी दार यहां का पानी, आग यहां के पानी में” इस कहावत को सच कर दिखाया मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली से लौटे गाँव भांवरपुर तहसील नरैनी जनपद बांदा के प्रवासी श्रमिकों ने और अपने श्रमदान से घरार नदी को पुनर्जीवित कर दिया। यह नदी पन्ना मप्र के जंगलों से आती है और बागेन नदी में समाहित हो जाती है। लगभग 30 वर्षों से घरार नदी...
More »उपभोग की आदतों में बदलाव से हो सकती है भू-मंडल और जीव-मंडल की रक्षा!
-न्यूजक्लिक, पिछले कुछ महीनों से हममें से उन लोगों को जिनके पास कई चीजों के उपभोग कर सकने लायक पर्याप्त क्रय शक्ति मौजूद है, उन्हें इस तथ्य के प्रति अवगत कराया होगा कि वे इसे कम करके भी जी सकते हैं। अब वे उत्पाद “फिलहाल उपलब्ध” टैब के साथ एक बार फिर से वापस आ चुके हैं, तो क्या ऐसे में हमें फिर से पुरानी आदतों को अपना लेना चाहिये? आख़िरकार...
More »आखिर क्यों पलायन करते हैं बुंदेलखंड के लाखों लोग, मनेरगा में काम न मिलना भी बड़ी वजह?
-गांव कनेक्शन, "अगर हमें यहां काम मिलता रहता तो हम गांव छोड़कर क्यों जाते ? हमें इधर लॉकडाउन में सिर्फ 12 दिन का मनरेगा में काम मिला है, इसके 5 साल पहले मनरेगा में काम मिला था। जब काम नहीं मिला तो हमारे जैसे गांव के बहुत से लोग कमाने के लिए शहर चले गए।" उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के बालाबेहट गांव की गुड्डी बताती हैं। गुड्डी के गांव के...
More »श्रम क़ानूनों में ढील देने से बाल मज़दूरी बढ़ेगी
-द वायर, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के गठबंधन ने लॉकडाउन के बाद श्रम कानूनों में ढील देने से महिला श्रमिकों पर दुष्प्रभाव पड़ने और श्रमबल में बाल मजदूरों की शामिल होने की आशंका जताई है और सरकार से विधेयक की समीक्षा करने की अपील की है. गठबंधन- वर्किंग ग्रुप ऑन वुमेन इन वैल्यू चैन्स (डब्ल्यूआईवीसी) ने रेखांकित किया है कि कैसे आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तर पर दी...
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