लंदन : मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि भारत में नये शासन में सांप्रदायिक हिंसा बढी है और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से हजारों भारतीयों के जबरन बेदखली का खतरा पैदा हो गया है. यहां जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2015 में एमनेस्टी ने 2014 मई के आम चुनावों को लेकर चुनाव संबंधी हिंसा, सांप्रदायिक झडपों और कॉरपोरेट परियोजनाओं पर सलाह मशविरे में नाकामी...
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महंगी पड़ेगी मुफ्तखोरी की राजनीति - हृदयनारायण दीक्षित
धनार्जन बहुत कठिन नहीं होता, लेकिन खर्च की प्राथमिकता तय करना बहुत कठिन है। राजकोष राष्ट्रीय संपदा है। भारत के लोगों की श्रम साधना से संचित निधि। इसका विनियोग-सदुपयोग राष्ट्रीय विकास के लिए ही किया जाना चाहिए। संविधान निर्माताओं ने बहुमत प्राप्त सरकार को भी मनमाने खर्च की छूट नहीं दी। संसद और विधानमंडल आय और व्यय के प्रत्येक बिंदु पर विचार करते हैं, बजट पारित करते हैं। खर्च अधिकार...
More »भाषाई मानवाधिकार का मसला - लाल्टू
मराठी साहित्य में अपने योगदान के लिए इस साल ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले भालचंद्र नेमाड़े ने कहा है कि अंगरेजी की वजह से भारतीय भाषाएं खत्म हो रही हैं। वे इससे भी आगे बढ़ कर यहां तक कह गए हैं कि हमें अंगरेजी को हटाने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए। सलमान रुश्दी और सर विदिया नायपॉल का जिक्र करते हुए नेमाड़े ने कहा कि भारतीय भाषाओं में जो लिखा...
More »विकास दर और जीवन स्तर- एम के वेणु
जग सरकार का पहला पूर्ण बजट गंभीर वैश्विक मंदी की पृष्ठभूमि में तैयार किया जा रहा है। यूरोजोन की डगमगाती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बृहस्पतिवार को ही यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने 13 खरब डॉलर के आपूर्ति कार्यक्रम की घोषणा की है। जापान की अर्थव्यवस्था भी लुढ़क रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक तिहाई का योगदान करने वाली चीन की अर्थव्यवस्था भी खास्ता है। ब्रिक्स समेत तमाम उभरती अर्थव्यवस्थाएं,...
More »लूट का अध्यादेश- के सी त्यागी
बाईस दिसंबर को संसद का सत्र समाप्त होने के तुरंत बाद सरकार द्वारा जारी अध्यादेश से जहां बिल्डर समुदाय और कॉरपोरेट घराने गदगद हैं वहीं दूसरी ओर किसान फिर पुरानी शंकाओं से भयभीत हैं। वित्तमंत्री अरुण जेटली कुशल अधिवक्ता हैं, वे अपनी सरकार द्वारा किए गए इन बदलावों को बड़ी चतुराई से शब्दों का ताना-बाना बुन कर किसानों के हित में बताने का विफल प्रयास कर रहे हैं। पर शायद...
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