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ताकि फिर न हो मैगी जैसी घटना- प्रदीप एस मेहता

मैगी से जुड़े हाल के विवाद ने बहुतों को गहरी नींद से जगा दिया है। इसके बाद सिर्फ मैगी या नेस्ले की छवि खराब नहीं हुई है, बल्कि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड ऐक्ट, 2006 (एफएसएसए) और विनियंत्रक फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की छवि भी दांव पर है। वैसे तो असंगठित पैकेज्ड और गैर पैकेज्ड खाद्य उत्पादों के प्रति उपभोक्ता हमेशा ही सशंकित रहते हैं, पर हाल...

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डिजिटल इंडिया-- बहुत कठिन है डगर पनघट की

अगर आप सोचते हैं कि देश के ढाई लाख पंचायतों को तेज गति के इंटरनेट से जोड़कर नागरिकों को जरुरी सेवा ऑनलाइन प्रदान करने का डिजिटल इंडिया मिशन शीघ्र साकार होने वाला सपना है तो नीचे लिखे तथ्यों पर गौर कीजिए--   यंगिस्तान कहलाने वाले हिन्दुस्तान के गंवई इलाकों में 14-29 साल के 82 फीसदी व्यक्ति कंप्यूटर चलाना नहीं जानते. शहरी अंचलों में ऐसे व्यक्तियों की की तादाद 50 प्रतिशत (51 फीसदी)...

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दर्शकों तक पहुंचने की कठिन डगर - मृणाल पांडे

किसी भी लोकतांत्रिक देश की सरकार और आम आबादी के बीच सहज-सतत संवाद हर कल्याणकारी राज्यव्यवस्था की बुनियादी जरूरत होती है। जब सरकार ने (बीसवीं सदी के अंतिम दशक में) सूचना प्रसार मंत्रालय की मातहती में चलाई जाती रही रेडियो-टीवी की प्रसारण सेवाओं को प्रसार भारती नामक स्वायत्त इकाई को सौंपा था तो शायद उसके पीछे उसके मार्फत राज्य व नागरिकों के बीच एक भरोसेमंद-मजबूत पुल बनाने का ही लक्ष्य...

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ताकि प्राथमिक शिक्षा में सुधार आए- जाहिद खान

देश की प्राथमिक शिक्षा में सुधार हो, सरकारें इस मुद्दे पर दशकों से विचार कर रही हैं। लेकिन यह सुधार कैसे होगा, इस पर कभी ईमानदारी से नहीं सोचा गया। यही वजह है कि आजादी के अड़सठ साल बीत जाने के बाद भी सरकारी नियंत्रण वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में न तो शिक्षा का स्तर सुधर पा रहा है और न ही इनमें विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मिल पा...

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खाद्य सुरक्षा: सुधर सकते हैं फिसड्डी राज्यों के भी हालात- ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) की दशा ठीक नहीं है। अधिनियम को लागू हुए दो साल होने को आये लेकिन कुछ ही राज्य इसपर अमल कर पाये हैं। बाकी राज्य अब भी पात्र परिवारों की पहचान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के सुधार तथा अन्य तैयारियों से जूझ रहे हैं। तो भी, हाल के सबूतों से संकेत मिलते हैं कि कुछ राज्य अधिनियम को बेहतर ढंग से लागू कर पाये...

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