राजनीतिशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वान रजनी कोठारी के जीवन और कृतित्व के बारे में जाने बिना भारतीय राजनीति और समाज के आपसी रिश्तों के बारे जानना नामुमकिन है. इस लिहाज से उनका विमर्श भारतीय राजनीति की एक पूरी किताब की तरह है, जिसे पढ़ना हर समझदार व्यक्ति के लिए अनिवार्य है. 1969 में प्रकाशित अपनी सबसे मशहूर रचना ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया' में उन्होंने दावा किया था कि भारतीय समाज के संदर्भ...
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और बढ़ेगी अमीरी-गरीबी की खाई, 2016 तक एक प्रतिशत लोगों के पास होगी 50% दौलत
गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम के सर्वे में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. सर्वे में कहा गया है कि 2016 में दुनिया की आधी दौलत यहां के केवल एक प्रतिशत लोगों के पास होगी. सर्वे में कहा गया है कि इन एक प्रतिशत लोगों की संपत्ति में इस एक साल में दोगुणी बढ़ोतरी हो जायेगी. ऑक्सफैम के अनुसार जहां 2009 में इन लोगों की सम्पत्ति में 44 फ़ीसदी की...
More »विकास का नया भारतीय मॉडल - वीएन कौल
इस बात का अपने आपमें एक प्रतीकात्मक महत्व था कि नीति आयोग 1 जनवरी 2015 को अस्तित्व में आया। यह नए साल में नई सरकार के नए दृष्टिकोण को दर्शाने वाला कदम था। नीति आयोग ने जिस योजना आयोग की जगह ली, उसका मूल विचार प्रो. मेघनाद साहा के दिमाग की उपज था, जिन्होंने वर्ष 1938 में समाजवादी शैली में संचालित होने वाली एक राष्ट्रीय योजना समिति की परिकल्पना की...
More »बैंकों की दशा सुधारने की कवायद- धर्मेंन्द्रपाल सिंह
देश की अर्थव्यवस्था से आजकल अजीब इशारे मिले हैं। बीते अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन 4.2 फीसद गिरा। जुलाई से सितंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर 5.3 प्रतिशत दर्ज की गई। सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरा जोर लगा रखा है, लेकिन देशी-विदेशी पूंजीपति नया निवेश करने से कतरा रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हमारा देश ‘बैलेंस शीट रिसेशन' के...
More »घर छोड़ने को मजबूर क्यों अन्नदाता? - देविंदर शर्मा
कृषि के संदर्भ में राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) की हालिया रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि कृषि न केवल संकट के दौर से गुजर रही है, बल्कि उसका तेजी से क्षरण भी हो रहा है। मैं चकित नहीं हूं। आखिरकार 1996 में ही विश्व बैंक ने भारतीय कृषि के पतन की दिशा बता दी थी। तब विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि अगले बीस वर्षों में भारत...
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