सीकर. राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में यदि पात्र को रोजगार नहीं मिल पाता है, तो वह बेरोजगारी भत्ते का हकदार है। सरकार ने यह सुविधा मुहैया तो करा दी, लेकिन इसका फायदा उठाने वाला एक भी नहीं है। जिला परिषद में अब तक बेरोजगारी भत्ते के लिए किसी ने आवेदन नहीं कर रखा है। उल्लेखनीय है कि महानरेगा योजना में आवेदक को तय सीमा में रोजगार नहीं दिए जाने की स्थिति में पात्र व्यक्ति...
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हरी वादियों का चितेरा
अस्सी के दशक की शुरुआत से ही एक अकेले व्यक्ति के शांत प्रयासों ने ऐसे ग्रामीण आंदोलन की नींव रखी जिसने उत्तराखंड की बंजर पहाड़ियों को फिर से हराभरा कर दिया। सच्चिदानंद भारती की असाधारण उपलब्धियों को सामने लाने का प्रयास किया संजय दुबे ने। (तहलका-हिन्दी से साभार) शायद ही कुछ ऐसा हो जो संच्चिदानंद भारती को उफरें खाल के बाकी ग्रामीणों से अलग करता हो। ये तो जब वो...
More »हमारी नादानी से नदारद न हो जाएं नदियां
इसे अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परंपरा, हमारे यहा मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहा तक कुंभ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं। आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नानकर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वे उस नदी के जीवन के बारे में कभी भी नहीं सोचते।...
More »मुद्दे नहीं, स्थानीयता व व्यक्तित्व हावी
रांची। पिछले विधानसभा चुनाव के समय 2005 में जो भाजपा राज्य की सभी 81 सीटों में से 30 और जदयू के साथ कुल मिलाकर 36 सीटें पाकर सबसे बड़े दल और गठबंधन के रूप में उभरी थी, वह इस दिसंबर के चुनाव में स्वयं 20 एवं सहयोगी जदयू 2 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। झामुमो उस बार 17 सीटें लेकर आया था, इस बार एक बढ़त पाते हुए 18 तक जा पहुंचा।...
More »कोसी का कहर
कोसी का कहर अगस्त 2008 में बिहार के एक बड़े इलाके पर टूट पड़ा। कोसी को कभी बिहार का शोक कहा जाता था। जब यह नदी पूर्णिया जिले में बहती थी तब एक कहावत बड़ी चर्चित थी कि ‘जहर खाओ, न माहुर खाओ, मरना है तो पूर्णिया जाओ।’ इस नदी का यह स्वभाव था कि वह अपना रास्ता बदलती रहती थी। यह कब अपना रुख बदल लेगी, इसका अंदाजा लगाना...
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