कभी हमारे घरों को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरैया अब नजर नहीं आतीं हैं। करीब 10 सालों से यह घरेलू पक्षी शहर से विलुप्त हो चुकी है। गांवों की तरफ भी कभी- कभार चहचहाहट सुनाई पड़ती है। घरों की बदलती डिजाइन, इलेक्ट्रिक पंखे समेत कई ऐसे कारण हैं जो नन्हीं गौरैया को बेदखल करने के लिए जिम्मेदार है। वन विभाग ने भी कभी इनके संरक्षण की दिशा में ठोस...
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कितने बदल रहे हैं हमारे गांव-- आर विक्रम सिंह
समस्याएं चिह्नित करना एक बात है, समाधान के रास्ते खोजना दूसरी बात। हमारे गांवों में अशिक्षा है, बेरोजगारी है, बीमारियां हैं, जमीनों के विवाद, मुकदमे हैं। जात-पांत की सामाजिक समस्याएं बरकरार हैं। हां, शोषण का वह रंग अब नहीं है, जो प्रेमचंद के उपन्यासों में मुखर होता है। कथित उच्च वर्ग में श्रम से अरुचि, दलित वर्ग में शिक्षा से अरुचि भी वहीं की वहीं है। नगरों की ओर पलायन...
More »आधी अधूरी खाद्य व्यवस्था-- जाहिद खान
तत्कालीन यूपीए सरकार जब साल 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक लेकर आई, तो यह उम्मीद बंधी थी कि इस विधेयक के अमल में आ -जाने के बाद देश की 63.5 फीसद आबादी को कानूनी तौर पर तय सस्ती दर से अनाज का हक हासिल हो जाएगा। अफसोस, इस कानून को बने तीन साल हो गए, मगर यह आज भी पूरे देश में अमल में नहीं आ पाया है। नौ...
More »पशुओं को बीमार और बांझ बना रही है हरे चारे की कमी-- उपेन्द्र पांडेय
हरियाणा पंजाब के पशुओं की कमजोरी और उनके विकास में एक बड़ी बाधा लौह तत्व की कमी के रूप में उभर कर आई है। लौह तत्व की कमी मतलब खून की कमी या चिकित्सको की भाषा में एनीमिया। दुधारू पशुओं में बार बार प्रयास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने से लेकर उनके विकास, ताकत और रोगों से लड़ने की क्षमता आदि कमी है। इसके लिए पशुओं के खानपान में...
More »आबादी का दबाव बढ़ा रहा है रेगिस्तान-- पंकज चतुर्वेदी
एक तरफ परिवेश में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है, तो दूसरी ओर ओजोन परत में हुए छेद का विस्तार हो रहा है। इससे उपजे पर्यावरणीय संकट का कुप्रभाव कई तरह से सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूनेप की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर के करीब 100 देशों में उपजाऊ या हरियाली वाली जमीन रेत से ढक रही है और इसका असर लगभग एक...
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